शिक्षा का रंगभारत में शिक्षा का रंग बदल रहा है शुरुआत अर्जुन सिंह ने की शिक्षा का अल्प्संख्यकीकरण करके, फिर तो रातो रात डेल्ही स्तिथ जामिया, संत स्टेफेन और 4 सिखों के कालेज रंगीन हो गए. कर्नाटका में अब गीता पाठ होगा, जिससे मुस्लिम दुखी है पर वे कुरान पढ़ाने वाले मदरसों के लिए सरकारी ग्रांट लेंगे. वैसे बात अभी मुस्लिम सिख जैन आदि तक ही है कौन जाने ये कल शिया, सुन्नी, कादियानी, सहजधारी, श्वेताम्बर,दिगंबर आदि में तब्दील हो जाएँ.
अब सिखों के चार कालेज जो दिल्ली यूनिवर्सिटी के अनुसार सबको सामान अवसर देने की शर्त पर चालु हुए थे व् विभिन्न सिख गुरुओं के नामपर है जिन्होंने बिना भेदभाव के लंगर व् गुरुद्वारों में सबको सांझा किया. वर्षो से खेती तकनीक व् खेती मजदूरों पे शोध करने का दावा करने वाला allahabad agriculture institute में से allahabad निकल जाता है और और पादरी सैम हिग्गिन बोटम का नाम आ जाता है व् कालेज में शोध कम और आस पास के निर्धन मजदूरों को पकड़ "सन्डे मास" अधिक मनाया जाने लगा है
DPS को एक इसी पादरी ने शुरू किया शुक्र है वो एक ट्रस्ट है जिसके सर्वेसर्वा अल्पसंख्यक मंत्री है नहीं तो अंग्रेजी गिटपिटाने ने वालें लिबरल, खूब रोना रोते जैसे वे संत स्टेफेन के जाने पर रोये थे अन्य किसी संस्थाओ को उन्हें अपने हाथ से निकलने का कभी मलाल नहीं होगा क्यूंकि वहां OBC दलितों,आदिवासियों का नुक्सान हुआ है
सवाल यह यह है की शिक्षा का इसी तरह का ध्रुविकर्ण होता रह तब कल को शिक्षा के राजकीय सलेबस को बदल हर धर्म के नुमैन्देय अपनी मज़हबी सहूलियतो की तरह शिक्षा को मज़हबी रंग देना शुरू कर देंगे . दर ये भी है की स्वायतता के नाम पर हर धर्मिक शिक्षा केंद्र का अपना बोर्ड होगा अपनी पद्धति होगी तब वो राष्ट्रीय मानको को कैसे एकरूप कर पाएंगे . इन तरह के प्रयासों से क्या हम सर्व शिक्षा अभियान को प्राप्त कर सकेंगे.
ब्लाग्मंत्र : जिस तरह आंसू के लिए मिर्च जरूरी नहीं, वैसे ही बुद्धिमता सिद्ध करने के लिए ज्यादा से ज्यादा कमेंट्स व् उच्च्श्रलंखता जरूरी नहीं
Monday, July 25, 2011
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