ब्लाग्मंत्र : जिस तरह आंसू के लिए मिर्च जरूरी नहीं, वैसे ही बुद्धिमता सिद्ध करने के लिए ज्यादा से ज्यादा कमेंट्स व् उच्च्श्रलंखता जरूरी नहीं

Monday, October 29, 2012

महंगाई और गैस की सौदेबाजी

जब देशी पूंजी से रिलायंस ये कमाल कर सकता है तब विदेशी पूंजी से  बीपी या कोको कोला क्या क्या कर सकते है जरा सोचिये..... जार्ज फर्नांडिस जैसे समाजवादी आज कहाँ है?

जो बात हम कहते थे वो आज हो गयी ना सच आज रांची एक्सप्रेस ने स्पष्ट रूप से सवाल पूछ ही लिया है "क्या मोइली अब रिलाइंस के कहने पर काम करेंगे? क्या अब तेल और एलपीजी के दाम बढ़ने वाले हैं?
0केजरीवाल ने आगे कहा कि जयपाल रेड्डी एक ईमानदार मंत्री कहे जाते हैं, इसलिए बतौर सजा उनसे पेट्रोलियम मंत्रालय छीन लिया गया है." एन डी टी वी ने भी आज ये सवाल मंत्रिपरिषद के फेरबदल के मद्देनज़र कर ही दिया है पढ़िए महीनो पूर्व लिखा था .. .......



तकनिकी जानकारों का मानना है की रिलायंस ने जिन दावों के साथ कृष्ण गोदावरी बेसिन के गैस ब्लाको को सरकार से पाया था वह वो उस अपेक्षा पर खरी नहीं उतरी है और ना ही अरबो के सौदों के साथ इस बारात में शामिल बाराती ब्रिटिश पेट्रोलियम की पार्टनरशिप से देश को फायदा मिला है.रिलायंस के प्रमुख तेल फील्ड KG-D6 में कच्चा तेल उत्पादन 37.9 % वर्ष दर वर्ष घटता जा रहा है जोकि मौजूदा समय में 4.94 मिलियन बैरल तेल रह गयी है वही नैचुरल गैस का उत्पादन 23.5 वर्ष दर वर्ष घट के 551.31 बिलियन क्यूबिक फीट हो गया है . रिलायंस इस घटोतरी के बारे में आध्कारिक रूप से कह रही है की “Production from the KG-D6 block has been adversely impacted due to unforeseen reservoir complexities”.

अब भारतीय मीडिया और पत्राकरिता जगत ने भी कभी इन ना देखे जाने वाले कारणों का पता नहीं लगाया, क्यूंकि वे भी इसके धन से मैनेज हो जातें है .कुछ लोगो का मानना है की ब्रिटिश पेट्रोलयूम को 7.2बिलियन डालर में पिछले साल कंपनी ने ब्रिटिश पेट्रोलियम को अपने 21 तेल और गैस के कुएओं में 30 % की हिस्सेदारी बेचीं थी तब अरबो की इस डील पर सबने उंगली उठायी थी वरुण गांधी भी एक बार बोलकर चुप होगये. इसमें मजेदार बात ये थी की इन गैस फील्डो में रिलायंस ने महज 5.6 बिलियन डालर का निवेश किया और 7.2 बिलियन डालर में 30 प्रतिशत हिसा बेच कर अपने रकम से ज्यादा निकाल लिया वो भी सिर्फ 30 % हिस्सा बेचकर और आगे भी ब्रिटिश पेट्रोलयूम ही उसकी उत्पादन क्षमताओं के लिए मदद करेगी. अब सब मदद ब्रिटिश पेट्रोलयूम करेगी तब रिलायंस क्या दलाली करेगी?? संसद में अपने मनमाफिक कानून बनेवायेगी, मंत्री तो खैर है ही उनकी पसंद का, वही भारत को निर्यात कर अच्छा मुनाफा कर रही ब्रिटिश पेट्रोलयूम भारत में निवेश में देरी करेगी क्यूंकि अगर घर में तेल मिलेगा तो उसके निर्यात बंद हो जायेंगे यानी जो सब्जी अपने खेत में उग सकती है वो विदेशो से आ रही है. एक बात और भारत में एनर्जी -उर्जा के क्षेत्र में गैस की हिसीदारी 10 प्रतिशत है जबकी विदेशो में उसकी औसत 24 प्रतिशत है कग बैसन से गई मिलता तो महंगे तेल की जगह सस्ते गैस पर काम करते अगर सस्ती गैस की बिजली सस्ती होगी तो महंगाई भी कम होगी इस लिए ऊर्जा क्षेत्र की इस लापरवाही/बेईमानी का इलाज होना चाहिए. हमारे यहाँ इलेक्शन चंदे पर साफ़ सुथरी निति नहीं पर अमरीका में है जहा ब्रिटिश पेट्रोलयूम सबसे बड़ा राजनैतिक चंदा देने वाला ग्रुप है सोचिये ये कई देशो में फ़ैली पेट्रोलियम कंपनिया कैसे संसदों में अपने लिए कानून बनवा लेती है और मीडिया में अपनी छवि. पत्रकारों को भी रिलायंस के आगे न झुकते हुए इसके कर्मो को उजागर करना ही होगा ?

Sunday, October 28, 2012

अर्ली वार्निंग सिस्टम



इसे यूपी वालो की भाषा में इसे पूर्व चेतावनी तंत्र कहते है फेसबुक तो अपने यहाँ भड़काऊ कंटेंट के लिए ऐसे लोग रखती है जहा पर भड़काऊ कंटेंट हटा दिए जाते है केंद्र सरकार ने भी इन्टरनेट के विषय में ऐसी कमेटी बनाई है, मेरा ये सुझाव यूपी जैसे बड़े राज्य के लिए है की वे भी ऐसा ही निगरानी कक्ष बना ले. ये पूर्व चेतावनी तंत्र ना सिर्फ मेरठ में हुए फेसबुक को लेकर बवाल जैसी घटनाओं पर काबू रखेगा वरन सिटीजन जर्नलिस्ट की तरह काम करते हुए प्रदेश के विभिन्न कोनो में हालातो को  जांचने में राज्य की  मदद करेगा. फेसबुक पर मौजूद Anil Kumar Singh जी ने फैजाबाद की घटना पर लिखा था "आखिरकार फैजाबाद को साम्प्रदायिकता की आग में झोंकने की साजिश कामयाब हो ही गई .बाबरी मस्जिद की शहादत के समय भी फैजाबाद ने अपना संयम नहीं खोया था .............मस्जिद के ऊपर ही अपने मंजर मेंहदी भाई के अख़बार < अपनी ताक़त < का दफ्तर है .हम लोगो की बैठकी का अड्डा भी .उसे तोड़ डाला गया .किताबें फाड़ डाली गई .उनका कंप्यूटर प्रिटर तोड़ डाला गया .जम कर लूट हुई.तस्वीरें आज सुबह की हैं .आग अभी भी लगी हुई थी .देर -सबेर बुझा दी जाएगी .लेकिन लोगों के दिलों में सुलगते जख्मों को कब भरा जा सकेगा .इस आग को हम कैसे बुझाएंगे ?

उनकी लगाईं तस्वीर तो काफी कुछ बयान कर रही थी तब अगर सूबे के मुखिया इसे देख लेते तो आग इतनी ना बढ़ पाती, आज एक और उसी प्रकार का मुद्दा ग़ाज़ीपुर जिले के जिला पंचायत सदस्य Braj Bhushan Dubey ने उठायी  है तस्वीर लगाकर वे बता रहे है की गाँव में किसानी की समस्या क्या है . वे बता रहे है एशिया के सबसे बडे ग्राम गहमर, तहसील   ज़मानिया  में एक  पम्‍प कैनाल है जो गंगा नदी से निकलकर कई गांवों को पानी देती है। इस पम्‍प कैनाल से 4 और माइनर निकलते हैं। न मेन नहर में पानी आया और न माइनर्स में। आप देख सकते हैं कि नहर के अगल-बगल किसी खेत में पानी न जाने की वजह से किसानो ने या तो धान की रोपाई नहीं किया अथवा धान की फसल हुयी ही नहीं।वही वे बिहार की तस्वीर खींच दोनों में अंतर बता रहे है, वे लिखते है की  गहमर से मात्र दस कि0 मी0 की दूरी पर कर्मनाशा नदी के उस पार बक्‍सर जिले के चौसा में यह नहर है। आप देख सकते हैं कि बिहार की नहर कैसी है और किसान किस प्रकार नहर में पानी आने से अपनी फसल धान की काट कर अब दूसरी फसल के लिये खेत तैयार कर रहे हैं.

वे कहते है " विकास पुरूष ( सपा सरकार में कैबिनेट मंत्री ओम प्रकाश सिंह ) जब अपने क्षेत्र में पानी नहीं दिलवा सकते किसानो को तो ये पूरे प्रदेश में क्‍या करेंगे। मैने पूछा किसानो से कि आप लोग कुछ करते क्‍यों नहीं तो उनका जबाब था कि मंत्री फर्जी मुकदमा करवा देगा या अपने गुर्गों से मरवा देगा। क्‍या सत्‍यता है मैं नहीं जानता किन्‍तु किसानो की कायरता व मंत्री की निष्क्रियता पर तरस जरूर आता है"

कुछ इसी तरह का अलकन मेरे एक लेख में बिहार और यूपी की नहरों के विषय में हुआ है जहा कोसी में आयी बाढ़ के बाद बिहार ने काफी निवेश किया है वही यूपी में सिंचाई व् बाँध निर्माण  के नाम पर भ्रष्टाचार के अलावा कुछ नहीं हुआ है.

कामराज प्लान नहीं ये फेरबदल अधूरी चुनावी लीपा पोती है


जहाँ  डाल डाल पर नेता करते बसेरा वो यूपी बिहार है मेरा, आखिर कांग्रेस को समझ आ ही गया की यूपी बिहार किसी भी बबुआ के लिए रसगुल्ला नहीं की यूरोप में छुट्टियों के बाद आयेंगे और गुडुप कर खा जायेंगे. इन्ही सब बातों  को देखते हुए लगता है कांग्रेस ने इन प्रदेशो की  आस ही छोड़ दी है.  करीब 134 सीटो वाले इस भूभाग में महज पांच मंत्री है जबकि इसकी अपेक्षा 
 ममता से हिसाब बराबर करने के लिए तीन तीन मंत्री बंगाल से बनाये गए है. आगरा से लेकर नागपुर तक के मध्यभारत को भी  छोड़ दिया गया है, विन्ध्य से लेकर सतपुड़ा तक के आदिवासी  इलाके में कांग्रेस के पास कोई भी बड़ा आदिवासी नेता नहीं होना उस  समाज  की मुख्यधारा  में राजनितिक  रिक्तता को दिखाता है जिसे कई बार नक्सली भरते है, 
साथ ही केन्द्रीय मंत्री परिषद से दो आदिवासियों  के द्वारा त्यागपत्र  देने के बाद किसी आदिवासी को यहाँ से लाना ज्यादा  उचित होता. उड़ीसा,  मध्यप्रदेश में कांग्रेस पुनर्जीवित हो सकती है इसलिए राहुल ब्रिगेड की मीनाक्षी नटराजन से भी कम से कम कांतिलाल भूरिया जी जगह बाहरी जा सकती थी इस इलाके को भूलना  चुनावी चूक भी हो सकती है मेरे मत में रेल यही से किसी के पास जाना चाहिए था. 

आज के कैबिनेट फेरबदल में कांग्रेस को 2004 में सत्ता में वापिस लाने वाले आंध्र प्रदेश को 6 मंत्री पदों से नवाज़ा गया है पर दूसरे कांग्रेसी गढ़ महाराष्ट्र की और पिछले लोकसभा में अच्छी सीटें देने वाले यूपी की नज़रंदाजी समझ नहीं आयी, वैसे  कही इस नज़रंदाजी में दो प्रमुख सहयोगी एनसीपी व् समाजवादी का कोई हाथ तो नहीं याद कीजिये कैसे जब एक बार अमर सिंह नाराज हो गए थे कांग्रेस ने सत्यव्रत जी को प्रवक्ता पद से हटा दिया था. अन्य राज्यों में देखा जाए तो  दिनशा पटेल, मोदी के विकल्प बनेंगे ऐसा लगता नहीं, खिलाड़ी रानी नारा के द्वारा असम के मुसलमानों को फुसलाने का खेल है. जनार्दन द्विवेदी की जगह हिमाचल में चुनावी गणित को ठीक करने के लिए चंद्रेश और दिल्ली से दो दो केंद्रीय मंत्री समझ नहीं आते. इमानदार पर राजनीतिक रूप से असरहीन अजय माकन को खानदानी वफादारी का पुरूस्कार देना और पवन बंसल को रेल मंत्रालय देना कुछ जम नहीं रहा, पुरूस्कार भ्रष्टाचार का आरोप झेल रहे सलमान खुर्शीद व् रक्षा सौदों के दलाल के साथ रिश्तो का विवाद झेल रहे पल्लम राजू को भी मिला है. 

इस विस्तार में सबसे बड़े खतरे की घंटी मनीष तिवारी है जिन्हें सूचना प्रसारण मंत्री बनाया गया है, उनमे संजय गांधी काल के बंसीलाल वाली काबलियत दिखती है. राहुल ब्रिगेड की बात करें तो मानिक टैगोर जो की  वायको को हरा कर आये थे उनकी नज़रअंदाजी अखरी है. कुछ बड़े नामो के इस्तीफे के बाद लग रहा था की ये संगठन को पुनर्जीवित करने का कामराज प्लान है पर सरकार के मंत्रिपद चयन से तो ये सिर्फ अधूरी चुनावी लीपा पोती लग रही है . अब देखना है कांग्रेस संगठन में कौन क्या जिम्मेवारी संभालता है,वैसे कुल मिलाकर हम इससे कुछ अच्छा सोच रहे थे.

Friday, October 26, 2012

समाजवाद की बयार

चित्र: सोशलिस्ट पार्टी के फ्रांस्वा ओलांड के समर्थक पेरिस में वामपंथियों की पसंदीदा जगह प्लेस डी ला बास्तील पर जमा होकर जश्न मनाते हुए
चित्र: सोशलिस्ट पार्टी के फ्रांस्वा ओलांड के समर्थक पेरिस में वामपंथियों की पसंदीदा जगह प्लेस डी ला बास्तील पर जमा होकर जश्न मनाते हुए
"सन 2000 में प्रसिद्द लेखक व् विवाद फ्रांसिस फुकुयामा ने 'टाईम्स' पत्रिका में अपनी किताब डी एंड ऑफ़ हिस्टरी के सन्दर्भ में कहा था "अगर समाजवाद का मतलब राजनैतिक व् आर्थिक तंत्र में सरकारों द्वारा अर्थव्यस्था के एक बड़े हिस्से पर नियंत्रत व् उसके धन कापुनः वितरण करना है तब मेरे मतानुसार निकट भविष्य में इस समाजवाद का अगली पीढ़ी में उद्भव लघभग शुन्य है". ये वाक्य उनके ही नहीं बल्कि विश्व के लगभग सभी प्रमुख राजनैतिक चिंतको थे हो भी क्यों ना सोवियत विघटन व् जर्मनी के एकीकरण से उत्साहित ये लोग 2008 व् 2011 की आर्थिक मंदी का अंदाजा लागाने में चूक गए अब चुक गए है तब समाजवाद कहा चूकने वाला था.समाजवाद ने सबसे पहले स्पेन में 2004 के चुनावों में सफलता हासिल की उसके बाद ब्राज़ील के चुनावों में जीत हासिल की. 2009 की मंदी इन सबको लील गयी,क्या समाजवादी क्या पूंजीवादी सभी विचारधारा को ये बयार ले डूबी, पूंजीवाद की समर्थ अमरीकी जनता 40 % समाजवादी विचारधारा की समर्थक हो गयी ओबामा सोशिअल सिक्यूरिटी और समग्र स्वस्थ्य सेवा को राज्य से निवेश करने की बात पर राष्ट्रपति बन गए और सिद्धान्तिक तौर पर " ओक्युपाई वाल स्ट्रीट" मुहीम का समर्थन करते नज़र आये. जब समाजवाद की बात चलती है तब राष्ट्रवाद भी उतना ही हावी होता है क्यूंकि दोनों के जन्मने का कारण आर्थिक मंदी होती है सो बेल्जियम, स्पेन ने जहा राष्ट्रवाद की राह पकड़ी वही ब्राजील ने उग्र समाजवाद को नेतृत्व के रूप में चुना. कल के फ्रांस के चुनावों के नतीजे भी इसकी और ही इशारा करते है समाजवाद पैर पसार रहा है पर डर इस बात का है जब समाजवाद असफल होता है तब राष्ट्रवाद हावी होता है ,समाजवाद से राष्ट्रवाद का तो चोली दामन का साथ है.अगर भारत की कांग्रेस सरकार उत्तरप्रदेश समेत सब जगह हार रही है तो ये भी संकेत है उसके बढती महंगाई को रोक पाने की सरकारी विफलता का और इससे समाजवाद की हिंसक विचारधारा माओवाद व् राष्ट्रवाद के देश में फिर से सक्रिय होने के आसार है. ये खतरा महज भारत को नहीं वैश्विक है, यूरोप में मुस्सोलीनी व् हिटलर के राष्ट्रवाद से पहले समाजवादी ही राज करते थे , उनकी विफलता ने ही कट्टर व् उग्र राष्ट्रवाद को जन्म देकर वैश्विक अस्थिरता को जन्म दे दिया "

Thursday, October 25, 2012

ज़मीन का अधिग्रहण और इनसाइडर ट्रेडिंग

हैदराबाद के बड़े बिजिनेस स्कूल आई एस बी के संस्थापको में से एक रजत गुप्ता जो की मैकिन्सी जैसे बड़ी निवेशक कंपनी के निदेशक थे , साथ ही प्रोक्टर एंड गैम्बल व् गोल्डमन सैक के बोर्ड सदस्य थे जिन्हें माइक्रोसोफ्ट व् संयुक्त राष्ट्र के लिए उल्लेखनीय कामो के लिए सराहा जाता है , जो आई आई टी की डिग्री धारक है साथ ही हार्वर्ड के छात्र रहे है उन्हें दो वर्ष की जेल हो गयी, घटना अपने आप में बड़ी क्षोभनीय है. विश्व के सबसे मजबूत राष्ट्र , विश्व के सबसे खुले दिमाग के समाज अमरीका में सबसे ऊँचे स्थान पर जा पहुंचे गुप्ता का कसूर सिर्फ इतना था की उन्होंने बोर्ड सदस्य रहते एक तमिल मूल के निवेशक राजरत्नम को ये बता दिया था की गोल्डमन सैक 'फलानी कंपनी ' के शेयर खरीदने जा रही है जिस पर राजरत्नम ने तुरंत उस कंपनी के शेयर खरीद लिए. फिर जब गोल्डमन सैक ने वे शेयर खरीदने चाहे तो ऊँचे भाव पर राजरत्नम से खरीदे, जिससे कुल मिलाकर राजरत्नम को दस लाख डालर का फायदा हुआ.अब चूँकि ये फायदा अन्दुरुनी जानकारी को बाहर करने की वजह से हुआ था जो एक कंपनी से किया गया विश्वासघात है इसे क़ानून की नज़र में इन्साईडर ट्रेडिंग कहते है जिसके लिए सजा मिलती है, रजत गुप्ता को भी कल पचास लाख डालर हर्जाना व् 2 साल की सजा मिली है.

अब भारत चले आइये, यहाँ अभी हाल ही में सीमेंट कंपनियों पर ऐसे आरोप के तहत कुछ फाइन लगा था सज़ा किसी को नहीं हुई थी, क्यूंकि भारत के कोर्पोरेट भारत में खुदा सी हैसियत रखते है. राजनितिक क्षेत्र में भी ऐसी जानकारिया होती है जैसे जब बजट जब बनता है तब वित्त मंत्री बजट में जिन चीजों की कीमते बढ्ने या घटने वाली होती है वो संसद/विधानसभा में रखने से पहले किसी को नहीं बताते ताकि लोग जमाखोरी ना शुरू कर दे, ये भी एक प्रकार इन्साईडर जानकारी होती है.

जब किसी शहरी मास्टर प्लान में या किसी प्रोजेक्ट के लिए ज़मीन अधिग्रहण को मंजूरी मिलने की खबर किसी को पहले मिल जाए तो वो फटाफट उन जगहों की जमीन खरीद लेगा, और इनकी अनुमति देने की जानकारी नेताओ और सरकारी बाबुओ को होती है, ये दोनों अक्सर ऐसी जमीने खरीद भी लेते है अगर विश्वास नहीं होता तो बीकानेर में एक बड़े एहम राजनितिक हस्ती के रिश्तेदार के द्वारा ज़मीन की खरीद को देख लीजिये या फिर पुणे के इर्द गिर्द किसानो की ज़मीन की खरीद देख लीजिये जिसके लिए किसानो को गोली से भी पिछले साल भुना गया था. मेरे मत में ये सब 'इन्साईडर ट्रेडिंग' है जिसके जिम्मेवार नेता- बाबु का गठजोड़ है.

कल आर्थिक विशेषज्ञ व् पत्रकार   प्रोंजय राय ठाकुरता कह रहे थे की "सुब्बारामी रेड्डी के बीवी इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनी की डायरेक्टर है और सुब्बारामी जी संसद की कमेटी में है ये घर ही में कनफ्लिक्ट आफ इंटरेस्ट है", अब ऐसी जगहों में जानकारिया एक दुसरे से छुपती हो ऐसा तो होगा नहीं.

Sunday, October 21, 2012

सोयाबीन फसल की बर्बादी के हर्जाने में मिली जेल, सुनीलम हम आपके साथ है





खबरें बहुत सी है है पर आपकी खोज खबर लेने वाला शख्स ही जब मुश्किल में हो तब वो खबर सबसे एहम बन जाती है, ऐसा ही एक मामला  डॉ सुनीलम का है. तिजारती समाजवादी बड़े देखे सुने होंगे पर ज़मीनी मिलना एक दुस्वपन है. कल  मुलताई न्यायालय के न्यायाधीश एससी उपाध्याय ने मुलताई गोलीकांड में हत्या के दोषी पाए जाने पर पूर्व विधायक डॉ. सुनीलम सहित तीन लोगों को आजीवन कारावास एवं हत्या के प्रयास में सात-सात वर्ष के सश्रम कारावास की सजा सुनाई. मुलताई हत्याकांड पर अपने इस निर्णय पर पहुंची अदालत ने महज तीन मामलो में ही फैसला सुनाया है जबकि सरकारी तंत्र ने पूरे 66 मामले ठोंके थे.

इस फैसले के तुरंत बाद डॉ सुनीलम ने कहा "दिग्विजय सिंह ने मेरी हत्या के इरादे से ही 12 जनवरी 1998 को गोली चलवाई थी और मेरे खिलाफ 66 मुकदमे दर्ज कराने का मकसद सालों साल अदालत के चक्कर कटवाना तथा सजा दिलवाना ही था। आज मैं कह सकता हूं कि वे तात्कालिक तौर पर ही सही अपना षड्यंत्र पूरा करने में सफल हुए हैं"

मामला दिग्विजय सिंह की सरकार के समय का है जब सन 1997 में ओले पड़ने से सोयाबीन की फसल ख़राब होने की वजह से किसान दुखी थे, कम उपजाऊ और एक फसल वाली मध्य प्रदेश   की पठारी भूमि में अगर साल में एकमात्र होने वाली फसल खराब हो जाए  हो जाए तो साल भर किसान क्या कर सकता है तिस पर सत्ता में भी कोई सुनवाई नहीं हो तो किसान के पास आत्महत्या या हथियार के अलावा कोई रास्ता नहीं बचता, खैर उस समय सुनीलम आगे आये और मुआवजे की मांग को लेकर किसान  आन्दोलन को नेतृत्व दिया. डॉ सुनीलम राजनीति में आये   हुए उन चंद सफल 'दिस्टिंगग्युईशड' लोगो में से है जो जन आन्दोलन का नेतृत्व करते है इस लिए दिल्ली में बैठे आका उनके निर्वाचित ना होने का,  दिस्टिंगग्युईशड या विशिष्ट होने का आरोप नहीं लगा सकते, पर कल के फैसले पर सब छुपी लगाए बैठे है माननीय न्यायालया के फैसले का सम्मान है पर जरा सोचिये एक आन्दोलन को जो जय जवान जय  किसान के लिए चलाया जाता  है उस पर 'राजा साहेब' की पुलिस फायरिंग कर 18 किसान शिकार  हो जाते है 150 घायल हो जाते है उसी आन्दोलन का नेतृत्व कर रहे मुलताई के पूर्व विधायक डॉ. सुनीलम, प्रहलाद अग्रवाल एवं  शेशराव भगत को धारा 302 के तहत आजीवन कारावास एवं पांच हजार रुपये का जुर्माना की सजा को पा जाते है. वैसे बहुत से कार्यकर्ता मानते है की सरकार ने इन सभी लोगो पर झूठे मुक़दमे लगाया है क्यूंकि अडानी समूह (फार्च्यून तेल वाले ) नाम का बिजनेस हॉउस इनके विरोध से परेशान था यानी बात फिर जल जमीन जंगल की लूट पर आ टिकी है जो लाइलाज नासूर बन चुका है


इत्तेफाक है या दुर्भाग्य की बाबरी आन्दोलन में हज़ारो लोगो को इकठ्ठा कर जमकर बलवा करने वाले बच  निकलते है कुछ तो इसी राज्य के मुख्यमंत्री भी बन जाते है, पर एक साधारण किसान  आन्दोलन पर करीब 70 किसान कानूनी शिकंजे में फंस जाते है .. अब मुआवाजे की कौन कहे घर का सामान-जमीन बेचकर ये लोग सरकारी केस लड़ेंगे. आप अब भी सोचते है की सब ठीक ठाक है .....

इससे पहले वे पत्र लिखकर शिवराज चौहान से भी ऐसे केसों में किसानो पर हो रहे जुल्म पर अपनी बात रख चुके है इसी कड़ी में उनका ये पत्र को देखा जा सकता है.


प्रिय भाई शिवराज सिंह चौहान जी,
नमस्कार
 आपको यह पत्र मुलताई किसान आंदोलन के संबंध में लिख रहा हूं। आप जानते ही है कि 12 जनवरी 1998 को पडय़ंत्रकपूर्वक दिग्विजयसिंह की कांग्रेस सरकारी द्वारा मेरी हत्या तथा मुलताई किसान आंदोलन को कुचलने के उद्ेश्य से पुलिस गोलीचालन कराया गया था । सरकार द्वारा 250 किसानों के खिलाफ 66 मुकदमें दर्ज किये गये थे जिसमें से 17 मुकदमें मुलताई न्यायालय में लंबित है। जिनमें 3 अतिरिक्त सत्र न्यायालय में अंतिम चरण में है। कृपया स्मरण करें कि मुलताई गोली चालन की तुलना भारतीय जनता पार्टी द्वारा जलियावालाबाग हत्याकांड से की गई थी तथा भा.जा.पासरकार का मुख्यमंत्री बनने के बाद सुश्री उभा भारती जी ने सभी प्रकरण वापस लेने की घोषणा सदन में की थी। सरकार की घोषणा के बाद अब तक 1 लाख से अधिक प्रकरण वापस लिये जा चुके है, तथा लोक अदालतो के माध्यम से लाखो प्रकरणों का निराकरण किया जा चुका है, लेकिन मुलताई किसान आंदोलन से जुडे 17 में से एक भी प्रकरण वापस नही लिया गया है। गत 14 वर्षो में अनेक बार पेशी चूक जाने के चलते सैकडों किसान कई बार गिरपतार किये जा चुके है तथा 20 किसानो की अब तक मौत भी हो चुकी है।

आपसे अनुरोध है कि किसानो पर लादे गये फर्जी मुकदमों को वापस लेने हेतु निर्देश जारी करे ताकि न्यायालय के समक्ष सी.आर.पी.सी. की धारा 21 के तहत् प्रकरण वापसी का आवेदन लगाया जा सके। आप यह भी जानते हैं कि किसान संघर्ष समिति द्वारा शहीद किसानों की स्मृति में मुलताई में शहीद किसान स्तंभ के निर्माण की मांग की जा रही है, मैंने विधायक निधि से 20 लाख रुपए की राशि भी आवंटित की थी, लेकिन सामान्य प्रशासन विभाग से नुमति नही मलने के कारण शहीद किसान स्तंभ का निर्माण नही किया जा सका। सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि भारतीय जनता पार्टी को नागपुर नाके पर कार्यालय नर्माण के लिये उर्दू स्कुल (आर.टीओ. बेरियर) की करोड़ों रुपए की भूमि आवंटित कर दी गई लेकिन 24 शहीद किसानों के लिये आपकी सरकार ने एक इंच भूमि भी आवंटित करना उचित नही समझा यही नही मुलताई बस स्टैण्ड पर जो स्तंभ कांग्रेस शासन काल में रातो रात बनाया गया था। उस भूमि को भी आज तक शहीद स्तंभ के नाम पर आवंटित नही किया गया है। किसान सघर्ष समिति की मांग थी की मुलताई तहसील को शहीद किसान स्मारक के तौर पर विकसित किया जाये, लेकिन आपकी सरकार ने शहीद किसानो की स्मृति में भी कोई कदम नही उठाया है। किसान सघर्ष समिति 12 जनवरी को शहीद किसान दिवस पर पूरे प्रदेश में मनाने की मांग करती रही है लेकिन इस मांग पर सरकार ने ध्यान नहीं दिया है। मुलताई पुलिस गोली चालन के बाद तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने तथा बाद में आपकी सरकार ने शहीद किसानों के परिवार के एक सदस्य को स्थाई शासकीय नौकरी देने की घोषणा की थी लेकिन इस घोषणा पर भी अमल नहीं किया गया, आपसे अनुरोध है कि सभी शहीद किसानो के परिवार के एक-एक सदस्य को स्थाई नौकरी उपलब्ध कराने का निर्देश जारी करें।

भारतीय जनता पार्टी ने मुलताई में पुलिस गोली चालन के बाद एसपी-कलेक्टर पर हत्या के मुकदमें दर्ज करने की मांग की थी, लेकिन भा.जा.पा. की सरकार बनने के बाद एसपी कलेक्टर पर मुकदमा दर्ज करने की बजाय उन्हें पदोन्नति दी गई है। जबकि आप भलि भॉंति जानते है कि देश में अनेक गोली चालनो के बाद संबंधित अधिकारियो पर हत्या के मामले दर्ज किये गये है। आपसे अनुरोध है कि गोली चालन करने एवं करवाने वाले अधिकारियो पर मुकदमा दर्ज करवाने का निर्देश जारी करें ।
मुलताई किसान आंदोलन मुआवजे के सवाल को लेकर हुआ था। जिसमें फसल बीमा भी अहम मुद्दा था, भा.जा.पा. अपने घोषणा पत्रो में तथा भा.जा.पा. नेता अपने भाषणों में बराबर किसानों को दोनो मुद्दो को लेकर आश्वासन देते रहे हैं लेकिन अब तक कोई ठोस कार्यवाही सरकार द्वारा नही की गई है। मुलताई के किसानो द्वारा फसल बीमा की प्रिमियम राशि लगातार जमा कराई जाती रही है लेकिन फसल नष्ट होने के बावजूद उन्हे कम से कम दुगना मुआवजा तथा नियमानुसार फसल बीमा की मुआवजा राशि नही दी गई है। आपसे अनुरोध है कि इस संबंध में भी आप संबंधित अधिकारियों को आवश्यक निर्देश जारी करने का कष्ट करे ं  उक्त मुद्दो को लेकर किसान सघर्ष समिति का प्रतिनिधि मंडल आपसे अविलंब मुलाकात करना चाहता है आपसे अनुरोध है कि 12 जनवरी 2012 के पहले प्रतिनिधि मंडल को मुलाकात का समय दें ।

भवदीय
(डॉं. सुनीलम)पूर्व विधायक, संथापकअध्यक्ष, किसान संघर्प समिति

डॉ सुनीलम ने इन सब बातो के मद्देनज़र ही कल कहा "सरकार बदलने से किसानों के प्रति सरकार का दृष्टिकोण नहीं बदलता".

Monday, October 15, 2012

'फाल्स स्टार्ट'



ओलम्पिक की दौड़ के लिए तैयारिया बहुत पहले से शुरू हो जाती है, खिलाड़ी जब ट्रैक पर खड़े होते है तो दौड़ की जल्दी में होते है. दौड़, पिस्तौल की गोली की आवाज़ सुनने पर शुरू होती है पर कई बार दौड़ में ऐसा होता है की बिना फिस्त
ौल की फायरिंग के ही धावक जल्दी में दौड़ पड़ते है इसे 'फाल्स स्टार्ट' कहते है. लगता है लालू व् पासवान बिहार में उसी जल्दी में है तभी तो वे हर मुद्दे को राज्य स्तर का रूप देकर नितीश को हराने की रेस में दौड़ पड़ते है.

दरअसल पिछले हफ्ते जिला मधुबनी में जुर्म की एक घटना में एक छात्र की कथित हत्या के विरोध में शुक्रवार और शनिवार को हिंसक प्रदर्शन हुए, जिसपर हुए विरोध प्रदर्शन के दौरान पुलिस की गोलीबारी में दो लोगों की मौत हो गई. इस क्षेत्रीय मुद्दे को राज्यस्तर का राजनीतिक आन्दोलन बनाने हेतु राजनीतिक हाशिये में पड़ा विपक्ष ने जिसमे लालू जी की राष्ट्रीय जनता दल(आरजेडी), पासवान जी की लोक जनशक्ति पार्टी(एलजेपी) और तारिक अनवर की राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी(एनसीपी) एकमत हो बिहार बंद का आह्वाहन कर दिया.

कल बिहार बंद था और एक व्यक्ति उसमे में मारा गया यानी दो पुलिस फायरिंग में और एक व्यक्ति बंद के दौरान मारा गया आर्थिक नुक्सान बिहार जैसे पिछड़े राज्य को हुआ सो अलग , पर पूरे घटनाक्रम के बाद शाम को ये पता चला की जिस छात्र की कथित ह्त्या के विरोध में ये सब हो रहा है वो तो दिल्ली में थाणे जाकर सरेंडर कर चूका है. खैर, राजनीतिक बाजीगिरी के अलावा सैद्धांतिक रूप से भी अगर देखे तो लालूजी के राज्य में साम्यवादी विचारधारा के छात्र चंद्रशेखर जो की जे०एन०यु० में छात्रसंघ अध्यक्ष भी थे, उनकी हुई हत्या हुई थी. उस छात्र की ह्त्या पर ना कभी साम्यवादी ताकतों, सीपीआई और सीपीएम ने, ना कभी पासवान जी ने बिहार बंद करवाया था 

अंत में, चुनावों के मद्देनज़र हर मुद्दे का राजनीतिकरण करने से कई बार 'फाल्स स्टार्ट' हो जाती है, वक़्त आ गया है विपक्ष असल ज़मीनी मुद्दे उठाये क्योंकि उनकी कभी कोई कमी नहीं होती

Sunday, October 14, 2012

हाय री नीतियाँ



देश को चलाने की व्यवस्था बड़ी जटिल होती है इसी लिए उसको चलाने वाली सरकारों का संकट भी बड़ा विचित्र होता है. देश को चलाने की रूपरेखा तो संविधान ने तय कर दी है, संसदिय प्रणाली के द्वारा देश चलाने वाले इसकी मूल भावना के अनुरूप देश की समस्याओ-विकास के लिए नीति निर्धारित करते है. इन्ही नीतियों को कार्यपालिका लागू करवाती है और न्यायपालिका इन नीतियों के विरुद्ध हो रही चीजों पर के खिलाफ दंडात्मक कार्यवाही करती है, इसी तंत्र- व्यवस्था या सिस्टम को लोकतंत्र कहते है. संसदीय प्रणाली लोगो के चुनाव से तय होती है, यानी देश सही मायनों में जनता के द्वारा चलाया जा रहा है.अब आज मुद्दा इस बात का नहीं की सरकार चलाने वाले खालिस नहीं या लागू करने वाली कार्यपालिका खालिस नहीं या संसदीय प्रणाली खालिस नहीं ये चर्चाये समय समय पर होती रही है, मुद्दा आज ये है की क्या सरकारों की नीतियाँ खालिस है की नहीं ?


कई लोग देश में आजकल ये मान रहे है की खुदरा परचून की दूकान चलाने के लिए किसी बिल या माइक की जगह पप्पू या लालाजी ही ठीक रहेंगे तो ये उनका मत है सरकार का नहीं बहुत संभव हो की ये सही हो, पर इस बात पर देश का विपक्ष सहमत नहीं. बौद्धिक जगत में भी अधिकतर लोग कह रहे है की ये उदारवाद नहीं बल्कि उधारवाद है, कभी सहयोगी रही ममता तो पूछ रही है 'मैं पूछना चाहती हूं कि आम आदमी की परिभाषा क्या है? लोकतंत्र की परिभाषा क्या है? क्या यह साफ नहीं है कि आम आदमी का नाम लेकर सत्ता का दुरुपयोग किया जा रहा है? आम आदमी को खत्म किया जा रहा है। क्या यह सोची समझी चाल नहीं है?'. ममता की अलग मजबुरिया है कल तक वे भी सिंगुर में टाटा का विरोध लोकलुभावन बातो के लिए कर रही थी. अब हर सरकार चाहती है की वो जनता के लिए कल्याण की योजनाये चलाये पर पार्टियों -नेताओं पर गिरते विशवास के चलते ज्यदातर लोक कल्याण की नीतियों का स्थान लोकलुभावन नीतियों ने ले लिया है.



पत्रकारिता जगत में पहले ममता बैनर्जी को जानने वाले आनंद बाज़ार पत्रिका के वरिष्ठ पत्रकार जयंत घोषाल कह रहे थे की सोनिया गांधी के नेतृत्व वाली यूपीए के 8 साल से चल रहे कार्यक्रम सब लोकलुभावन है आज 'फर्स्ट पोस्ट पत्रिका' के वेंकी वेम्बू लिख रहे है की कल के मनमोहन सिंह के भाषण में एक जरूरी तत्त्व है " पैसा पेड़ पर नहीं उगता नहीं " ये बात सही है तो ये बात सोनिया गांधी पर भी लागू होती है जिनकी लोकलुभावन नीतियों के लिए भी पैसा कही पेड़ से नहीं उगेगा. अपनी इसी बात को स्पष्ट करने के लिए उन्होंने 2014 लोकसभा चुनाव से पहले लाये जाने वाले 'राईट टू फ़ूड' जैसा खर्चीला अर्थव्यवस्था की कमर तोडू प्रोग्राम का जिक्र किया है. ये गौरतलब बात है की सरकारों के महंगे कार्यक्रम ज्यादातर लोकलुभावन होते है ये चुनावी संसदीय प्रणाली की मजबूरी भी है कोई नरेगा के माध्यम से अपने वोटरों को सीधे पैसे बाँट रहा है तो कोई बेरोजगारी भत्ते के नाम पर उन्हें अपना समर्थक बना रहा है कोई कम्यूटर तो फ्रिज तो कोई कलर टीवी बाँट रहा है, आखिर ये पैसा आता कहा से है , कभी खुदरा को खोदकर, कभी कोयले के आवंटन को काला कर कभी चुनाव से पहले किसानो की क़र्ज़ माफी करके चुनाव बाद रासायनिक खाद से सब्सिडी हटाकर ये काम किये जाते है.


एक प्रश्न यहाँ बड़ा ही सामयिक हो जाता है की 'क्या अच्छे लोग भी नीतियाँ चुनाव को ध्यान में रखकर बनाते है?'. शायद हां, वे देख चुके है की स्वर्णिम चतुर्भुज बनाने वाली अटल सरकार उन बिहार को छोड़ अन्य राज्यों में हार गयी जहां वे बने थे. चुनावी मजबूरियों के कारण देश का नेतृत्व ऐसे फैसले लेता रहेगा इसलिए अब जनता स्वयं तय करे की नीतियाँ लोकलुभावन होने चाहिए की लोक कल्याण वाली ???

Thursday, October 11, 2012

दिल्ली इस नॉट फिट फॉर वॉकिंग


लुटियन की दिल्ली तो अब बस ख़ास लोगो के लिए ही है असल दिल्ली अब लुटियन की रचना के बाहर है. खैर हाल तो लुटियन की दिल्ली का भी कुछ ठीक नहीं, हम छोटे थे तब बोट क्लब का पानी साफ़ होता था, जमुना इतनी मैली ना थी, फिर वो वक्त आया जब घोषणा हुई की दिल्ली में आने के बाद जमुना का पानी "नॉट फिट फॉर ड्रिंकिंग' हो गया है . छुटपन में रिक्शा ट्रॉली से धीरे धीरे स्कूल पहुँचते थे शाय
द तब हम वैश्वीकरण की चपेट में नहीं आये थे सो सब कुछ जीवन की गति से चलता था, अब तो जेट स्पीड के बाद मैक ३ की स्पीड आ गयी है सो बच्चे छोटी छोटी वैनो में सरपट स्कूल पहुंचाए जाने लगे है . ये छोटी छोटी गाड़िया इतनी बढ़ गयी है की इसने सड़क के दोनों तरफ की जमीन को सुरसा की तरह लील लिया है. फूटपाथ तो पहले से ही मजबूत "गरीबो" के पास रहता है सो वहां भी पैदल चलने वालो के लिए जगह नहीं, ऊपर से यहाँ वहा से बेतरतीब निकलती बाइकें शॉक दे दे तो कोई असहज बात नहीं यानी कम मिलाकर दिल्ली की सड़के " नॉट फिट फॉर वॉकिंग". देवदास की भाषा में ......."एक वो भी दिन आएगा जब लोग कहेंगे दिल्ली इस नॉट फिट फॉर लिविंग".

सिताबदियारा के संत तूने कर दिया कमाल




आज सम्पूर्ण क्रान्ति के नायक जयप्रकाश नारायण का जन्मदिवस है जेपी ने उस आन्दोलन में रामधारी सिंह दिनकर की पंक्तियां 'सिंहासन खाली करो कि जनता आती है..' से सत्ता प्रतिष्ठान के खिलाफ जन हुंकार को अभिव्यक्ति दी वो आजकल भी जंतर मन्त्र और रामलीला ग्राउंड में सुनायी दे जाती है. हाल ही में रामनाथ गोयनका के पुण्य तिथि थी, गोयनका जी उस पीढ़ी का नेतृत्व करते थे जो आज भारतीय टी वी व् प्रिंट पत्रकारिता के शिखर पर है, सो पीढी से आये सुझाव के चलते गोयनका जी को पढने लगी., हिंदी में अधिकतर जो मिला वो प्रभाष जी का लिखा था उनकी पुस्तक लुटियन के टीले का भूगोल को भी पढ़ा. उन्हें पढ़ते पढ़ते मै जेपी और इन्दिरा गाँधी' में पहुँची जहा उन्होंने इमरजेंसी के बाद चुनाव, व् उसकी हार के बाद जयप्रकाश नारायण और इंदिरा जी के बारे में लिखा है " कांग्रेस इंदिरा गाँधी के पल्लू में बंधी पार्टी हो गई और सर्वोच्च नेता के लिए पूरी और दयनीय वफादारी राजनीतिक व्यवहार की कसौटी बन गई . इंदिराजी में सत्ता के इस अद्भुत केन्द्रीकरण से जेपी चिंतित होने लगे
..........उत्तरप्रदेश और ओडिशा चुनाव के लिए चार करोड़ रुपये इकट्ठे किये गए इससे जेपी इतने चिंतित हुए कि इंदिरा जी से मिलने गए और कहा कांग्रेस अगर इतने पैसे इकट्ठे करेगी और एक एक चुनाव में लाखो रुपया खर्च किया जाएगा तो लोकतंत्र का मतलब क्या रह जाएगा. सिर्फ वो ही चुनाव लड़ सकेगा जिसके पास धनबल और बाहुबल होगा ........"( ये बात 1972 की है जो आज के वक़्त लिए कही गयी थी आज बिलकुल यही हो रहा है ).

जेपी की पत्नी प्रभावती व् इंदिरा जी की माता कमला नेहरु दोनों सखिया थी जिनके मृत्यु भी उसी दौरान हो गयी प्रभास जी कहते है की अगर प्रभावती जी ज़िंदा होती तो वे जेपी को कभी इंदिरा के खिलाफ आन्दोलन नहीं छेड़ने देती. शोकाकुल जेपी ने 1 वर्ष उससे उबरने में लिए फिर दिसंबर तिहत्तर में उन्होंने यूथ फार डेमोक्रेसी बनाई. अहमदाबाद की मेस में घटिया खाने से उपजे बवाल ने वहा युवाओं के नवनिर्माण आन्दोलन का रूप दे दिया जिसने तत्कालीन चिमन भाई पटेल की गुजरात सरकार की बखिया उधेड़ दी. जेपी तब वहाँ कहा था की " उन्हें क्षितिज पर सन 42 दिखाई दे रहा है". सनद रहे सन 42 में भारत छोड़ो आन्दोलन आया था उसकी तर्ज पर सत्ता छोड़ो का आन्दोलन की शुरुवात वही हो गयी थी. फिर मार्च में यही 1974 में यही आन्दोलन पटना की गलियों में नितीश,लालू आदि छात्र नेताओ ने किया फिर जून की एक शाम उन्होंने कहा "यह क्रान्ति है मित्रें! और सम्पूर्ण क्रान्ति है। विधान सभा का विघटन मात्र इसका उद्देश्य नहीं है। यह तो महज मील का पत्थर है। हमारी मंजिल तो बहुत दूर है और हमें अभी बहुत दूर तक जाना है।"

आज के दौर में गुजरे दौर का एक नेता अगर प्रासंगिक है तो जयप्रकाश नारायण पर आज मीडिया में राष्ट्रनायक पर अभिनायक भारी पड़े है. अमिताभ बच्चन आज जयप्रकाश नारायण पर भारी पड़े है , दोनों की ही आज जन्मतिथि है. बीबीसी पर एक प्रोग्राम आता है जिसमे वे कार की विवेचना करते है विवेचना दो लोग करते है खुल के बिना लाग लपेट कर मूल्यांकन होता है जनता भी शामिल होती है , हमारे यहाँ जब कार का मूल्यांकन होता है तो मूल्यांकन वालो को पंचसितारा में जिमाया जाता है ये नव पण्डे फिर बैठ के स्तुति गान करते है. चुनावों में साधारण उम्मीदवार की खबरें पेड न्यूज के आगे दम तोड़ देती है पर महंगी कारो की रंगीन तस्वीरे छपती है. मार्केट की यही तो ताक़त है जिसकी वजह से बिकने वाले अमिताभ हर जगह है, आम आदमी की शक्ती के प्रतीक जयप्रकाश कही नहीं.

Monday, October 8, 2012

बड़े हाथी के पीछे अन्य जाए छुप



इंडियन एक्सप्रेस के सम्पादक द्वय में से ज्येष्ठ अरूण शौरी, शेखर गुप्ता से बतियाते हुए कह रहे थे की घोटालो की मौजूदा बड़ी बड़ी रकम जैसे 1.76 लाख करोड़ का 2 जी , 70 हज़ार करोड़ का कामेनवेल्थ घोटाला इत्यादि ने हमें छोटे छोटे घोटालो के प्रति हमें संवेदनहीन बना दिया है. इतनी बड़ी रकम के घोटाले शायद ना होते हो जैसा की कामेंवेअल्थ का कथित घोटाला लन्दन ओलंपिक के बजट से ज्यादा था जो की अविश्वश्नीय रकम थी, सो बड़े बड़े घोटालो में शामिल रकम को बढ़ा चढ़ा कर छापना जनता को आंदोलित नहीं कर रहा बल्कि छोटे व् मझोले भ्रष्टाचार जैसे 200 -300 करोड़ के घोटाले जिनमे रकम सही है उन्हें अपनी परछाई में छुपा रहा है.

बड़े घोटालो से लोग आंदोलित नहीं हो रहे, सिस्टम उसे सही मान नहीं रहा, अदालत अपना समय लेंगी ऐसे माहौल में छोटे घोटाले नज़रअंदाज़ हो रहे है यानी कुल मिलाकर बढ़ा चढ़ा के खबर दिखाना या खर बुनना भ्रष्टाचार व् घोटालो के लिए काउन्टर प्रोडक्टिव हो रहा है

पैसे पेड़ पर नहीं उगते









हमारे यहाँ की घरेलू कामवाली अक्सर पैसो को बढाने की माँगा करती है पिछले साल से दो बार ये मांग मान ली गई इस बार जब ऐसी मांग आई तब उसे ये कहकर समझा लिया गया की पैसे पेड़ पर नहीं उगते. ये देश मुश्किल के वक़्त पर जेवर देने वालो में से है, बकौल प्रधानमंत्री देश 1991 के मुश्किल दौर से गुजर रहा है सो बिना किसी आन्दोलन के ऐसे मुश्किल दौर में कैसे केंद्र सरकार ने केंद्रीय कर्मचारियों को तोहफा देते हुए महंगाई भत्ता 7 फीसदी बढ़ा दिया है?

इसी साल मार्च महीने में महंगाई भत्ते में बढ़ोतरी की गई थी, अब फिर बढ़ोतरी की गई है जिससे केन्द्रीय कर्मचारियों का महंगाई भत्ता 65 फीसदी से बढ़कर 72 फीसदी हो गया है. किसानो और रसोई गैस की सब्सिडी हटाने वाली सरकार इस तरह 50 लाख केंद्रीय कर्मचारियों और करीब 30 लाख पेंशनर्स के साथ साथ उनके परिवारों को खुश क्यों कर रही है

याद कीजिये के कभी आपने फूल भिजवाये हो तो बदले में आपको कांटे मिले हो ? आज शाम को 'नमक हलाल' फिल्म देख रही थी, शशि कपूर परवीन बाबी को फूल भेजते है तो परवीन बाबी शशि कपूर को कांटे . सोचिये ऐसा आपके साथ भी हुआ है, आप उन्हें दो बार चुनकर उनके गले में फूल माला डालते है पर वे है की चुन चुन कर कांटे बो रहे है.

हाय री नीतियाँ


देश को चलाने की व्यवस्था बड़ी जटिल होती है इसी लिए उसको चलाने वाली सरकारों का संकट भी बड़ा विचित्र होता है. देश को चलाने की रूपरेखा तो संविधान ने तय कर दी है, संसदिय प्रणाली के द्वारा देश चलाने वाले इसकी मूल भावना के अनुरूप द
ेश की समस्याओ-विकास के लिए नीति निर्धारित करते है. इन्ही नीतियों को कार्यपालिका लागू करवाती है और न्यायपालिका इन नीतियों के विरुद्ध हो रही चीजों पर के खिलाफ दंडात्मक कार्यवाही करती है, इसी तंत्र- व्यवस्था या सिस्टम को लोकतंत्र कहते है. संसदीय प्रणाली लोगो के चुनाव से तय होती है, यानी देश सही मायनों में जनता के द्वारा चलाया जा रहा है.अब आज मुद्दा इस बात का नहीं की सरकार चलाने वाले खालिस नहीं या लागू करने वाली कार्यपालिका खालिस नहीं या संसदीय प्रणाली खालिस नहीं ये चर्चाये समय समय पर होती रही है, मुद्दा आज ये है की क्या सरकारों की नीतियाँ खालिस है की नहीं ?

कई लोग देश में आजकल ये मान रहे है की खुदरा परचून की दूकान चलाने के लिए किसी बिल या माइक की जगह पप्पू या लालाजी ही ठीक रहेंगे तो ये उनका मत है सरकार का नहीं बहुत संभव हो की ये सही हो, पर इस बात पर देश का विपक्ष सहमत नहीं. बौद्धिक जगत में भी अधिकतर लोग कह रहे है की ये उदारवाद नहीं बल्कि उधारवाद है, कभी सहयोगी रही ममता तो पूछ रही है 'मैं पूछना चाहती हूं कि आम आदमी की परिभाषा क्या है? लोकतंत्र की परिभाषा क्या है? क्या यह साफ नहीं है कि आम आदमी का नाम लेकर सत्ता का दुरुपयोग किया जा रहा है? आम आदमी को खत्म किया जा रहा है। क्या यह सोची समझी चाल नहीं है?'. ममता की अलग मजबुरिया है कल तक वे भी सिंगुर में टाटा का विरोध लोकलुभावन बातो के लिए कर रही थी. अब हर सरकार चाहती है की वो जनता के लिए कल्याण की योजनाये चलाये पर पार्टियों -नेताओं पर गिरते विशवास के चलते ज्यदातर लोक कल्याण की नीतियों का स्थान लोकलुभावन नीतियों ने ले लिया है.

पत्रकारिता जगत में पहले ममता बैनर्जी को जानने वाले आनंद बाज़ार पत्रिका के वरिष्ठ पत्रकार जयंत घोषाल कह रहे थे की सोनिया गांधी के नेतृत्व वाली यूपीए के 8 साल से चल रहे कार्यक्रम सब लोकलुभावन है आज 'फर्स्ट पोस्ट पत्रिका' के वेंकी वेम्बू लिख रहे है की कल के मनमोहन सिंह के भाषण में एक जरूरी तत्त्व है " पैसा पेड़ पर नहीं उगता नहीं " ये बात सही है तो ये बात सोनिया गांधी पर भी लागू होती है जिनकी लोकलुभावन नीतियों के लिए भी पैसा कही पेड़ से नहीं उगेगा. अपनी इसी बात को स्पष्ट करने के लिए उन्होंने 2014 लोकसभा चुनाव से पहले लाये जाने वाले 'राईट टू फ़ूड' जैसा खर्चीला अर्थव्यवस्था की कमर तोडू प्रोग्राम का जिक्र किया है. ये गौरतलब बात है की सरकारों के महंगे कार्यक्रम ज्यादातर लोकलुभावन होते है ये चुनावी संसदीय प्रणाली की मजबूरी भी है कोई नरेगा के माध्यम से अपने वोटरों को सीधे पैसे बाँट रहा है तो कोई बेरोजगारी भत्ते के नाम पर उन्हें अपना समर्थक बना रहा है कोई कम्यूटर तो फ्रिज तो कोई कलर टीवी बाँट रहा है, आखिर ये पैसा आता कहा से है , कभी खुदरा को खोदकर, कभी कोयले के आवंटन को काला कर कभी चुनाव से पहले किसानो की क़र्ज़ माफी करके चुनाव बाद रासायनिक खाद से सब्सिडी हटाकर ये काम किये जाते है.

एक प्रश्न यहाँ बड़ा ही सामयिक हो जाता है की 'क्या अच्छे लोग भी नीतियाँ चुनाव को ध्यान में रखकर बनाते है?'. शायद हां, वे देख चुके है की स्वर्णिम चतुर्भुज बनाने वाली अटल सरकार उन बिहार को छोड़ अन्य राज्यों में हार गयी जहां वे बने थे. चुनावी मजबूरियों के कारण देश का नेतृत्व ऐसे फैसले लेता रहेगा इसलिए अब जनता स्वयं तय करे की नीतियाँ लोकलुभावन होने चाहिए की लोक कल्याण वाली ???

दीनदयाल उपाध्याय का एकात्म मानववाद

dd25 सितम्बर 1916 में जन्मे दीनदयाल उपाध्याय कुशल संगठक, सामाजिक चिन्तक और पत्रकार और राजनेता थे, जिनको उनके द्वारा दिये गये ‘एकात्म मानववाद’ के दर्शन के लिए स्मरण किया जाता है. श्यामाप्रसाद मुख़र्जी जी अगर प्रखर राष्ट्रवाद को जनसंघ में लाये तो उसी जनसंघ में 14 साल महामंत्री रहे दीनदयाल उपाध्याय एकात्म मानववाद के सिद्धांत को लाये, जनसंघ से भाजपा तक का सफ़र जब  रथ यात्रा से तय किया गया तो इन दो बिन्दुओ की विशेष भूमिका रही.

 चर्च व् धर्म  को राजनीति से दूर करने की जो कामयाबी  यूरोप ने पायी भारत उससे कभी आज़ाद नहीं हो पाया, अपने अध्ययन में   प्राचीन ग्रीक के विद्वान् अरस्तु व् इसाई मत संत थोमस के विचारों में सामानता खोजने वाले  ज्ञक्एस  मारिटेन ने  यूरोपीय सत्ता ‘स्टेट’  के इस सेकुलरवाद को अधूरा मानते हुए अपने कैथोलिक विचारों का समावेश राजनीति में एक अलग विचारधारा  के रूप में किया, हालांकि जिन धर्मं को राजनीती से जोड़ने वाली क्रिस्टियन डेमोक्रटिक पार्टियों ने उनके इस सिद्धांत को माना  वे यूरोपीय राजनीति में आंशिक रूप से ही सफल हो पायी. ये सिद्धांत था एकात्म मानववाद या Integral Humanism .

 
 दीन दयाल जी के समकालीन  रहे ज्ञक्एस  मारिटेन के  इस सिद्धांत ने दीनदयाल जी के एकात्म मानववाद पर कितना प्रभाव डाला ये इन संदर्भो के बाद जानना ज्यादा मुश्किल नहीं होगा. इस विचार की परम्पराओं को सहेजे हुए क्रिस्टियन डेमोक्रटिक पार्टियों व् भारत में जनसंघ व् भाजपा की विचार धारा में भी ज्यादा अंतर नहीं है  मसलन दोनों ही परम्परावादी , एंटी सेकुलरवादी (ख़ास कर धार्मिक मसलो पर ) व् एंटी कम्युनिस्ट रही है, दोनों ही वर्ग  संघर्ष के सिद्धांतो  सिद्ध्नातो ना मानकर उदारवादी अर्थतंत्र  की पक्षधर है अनीश्वरवादी सेकुलरवाद से ज्यादा अपने धार्मिक व् सामजिक संगठन में कर्तव्य को सुनिश्चित करना आदि आदि. वैसे दीनदयाल जी के एकात्म मानववाद में   इन्सान  की  शारीरिक, मानसिक और बौद्धिक विकास  को भारत की  ‘अनेकता में एकता’ की अवधारणा के  तहत बल देने की बात की गयी है. 

एक जगह अपनी डायरी में उन्होने इसी की आस्था को व्यक्त करने के लिए के  न्यूयार्क टाइम्स के कोलमनिस्ट के ‘हिन्दू भारत’ नाम का अपने लेखकीय में बार बार उद्धरण करने पर तत्कालीन अमरीका में भारत के राजदूत मोहमद  करीम चागला का उदाहरण दिया. सादगी पूर्ण जीवन जीने वाले, पत्रिका ‘राष्ट्र धर्म’ (मासिक),  पांचजन्य (साप्ताहिक) तथा ‘स्वदेश’ (दैनिक) की शुरुआत करने वाले व् ‘सम्राट चन्द्रगुप्त’, ‘जगद्गुरु शंकराचार्य’, ‘एकात्म मानववाद’, ‘राष्ट्र जीवन की दिशा’, ‘राष्ट्रीयता का पुण्य प्रवाह’, ‘राजनैतिक डायरी’ आदि पुस्तकें लिखने वाले दीनदयाल जी आज के रेड्डी बंधू मय भाजपा में महज तस्वीर से ज्यादा बड़ी विरासत है, जिसको सहेजने  का काम नयी पीढी पर है.

नज़र रखिये पर नज़रिया बदलिए

बायें डॉ  इब्राहीम  अली  जुनैद और दाए अब्दुल  रहीम दोनों मक्का माजिद मामले बरी हुए है
 'सत्ताधारी पार्टियों का सशस्त्र धड़ा' नाम से पुलिस की भूमिका पर अंग्रेज़ी अखबार में कई वर्ष पूर्व वेद मारवाह अपनी चिंता व्यक्त कर चुके है., पुलिस फ़ोर्स की राजनीतिकरण की पुरानी बिमारी की वजह से ही आज गुजरात में धर्म के नाम पर तो यूपी में बहुजन और पिछड़े के नाम पर बंटी पुलिस, विधायिका के आगे बेहद मजबूर है.  ख़ुफ़िया एजेंसियों के ऊपर पिछले कई दिनों से सांप्रदायिक होने के आरोप लग रहे है ख़ास तौर पर हैदराबाद  व् मालेगांव में युवको के कोर्ट द्वारा बरी किये जाने के बाद तो ये बात राष्ट्रीय चिंतन में भी आयी थी. इसी माह जामिया नगर में पुलिस पार्टी का जनता ने जम कर विरोध किया, मसूरी की घटना के विषय में भी कईयों का मानना है की वहा भी स्तिथियाँ     बेहतर तरीके से निपटी जा सकती थी.

 राज्य सत्ता के अंदर तक साम्प्रदायिकता घुसी हुई है- जब कोई अपने दशको के अनुभव के बाद अम्बरीश कुमार सरीखा वरिष्ठ पत्रकार ये बात लिखे तब ये हमारे लोक तंत्र  के लिए वाकई गंभीर बात है. उनकी इस बात की   तस्दीक आज  सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में भी करते हुए कहा, “जिला पुलिस अधीक्षक, महानिरीक्षक और अन्य अधिकारियों को ये जिम्मेदारी दी गई है कि वो कानून का किसी भी तरह दुरुपयोग न होने दें और इस बात को सुनिश्चित किया जाए कि किसी निर्दोष व्यक्ति को ये नहीं लगना चाहिए कि उसे ‘माय नेम इज खान बट आई एम नॉट टेरेरिस्ट’ की वजह से सताया जा रहा है.”

ना खाता हूँ ना खाने देता हूँ

ss



पाकिस्तान की जेलो से भारतीय मछुआरों को छुडवाने के लिये अपील करने वाले गुजरात सरकार के मंत्री पुरुषोत्तम सोलंकी इस बार खुद के लिए ये अपील चुनावों में करते नज़र आयेंगे. कैसे ??
गुजरात में च चुनाव आने वाले है इसी सिलसिले में गुजरात में हो रही तैयारियों के खुद को तैयार कर रही हूँ, अभी कांग्रेस के चेहरे अर्जुन मोधवाडिया का ब्लॉग पढ़ रही थी. वहा से अभी मकान देने की कलाबाजी अब गायब है,नए मुद्दे आ गए है . अब लगता है भाजपा के सुशासन व् विकास में सेंध लगाने का प्रयास हो रहा है अब ऐन चुनाव के वक़्त उनके हाथ एक फुलझड़ी लगी है जो चुनावों में बम की तरह गूंजेगी. माजरा क्या है ये भी जान लीजिये : ये मामला भी प्राकृतिक संपदा के दोहन के नियमो में बदलाव से जनित भ्रष्टाचार से जुड़ा है. साल 2008 में इशाक मराडिया नाम के मछली के ठेकेदार ने गुजरात हाईकोर्ट में याचिका दायर कर आरोप लगाया कि राज्य के मत्स्य राज्य मंत्री पुरुषोत्तम सोलंकी ने राज्य के कई तालाबों और बांधों में मछली मारने के ठेके बिना सही प्रक्रिया का पालन किए अपने पसंदीदा लोगों को दे दिए है, जिसकी वजह से राज्य सरकार को 400 करोड़ रुपए का चूना लगा.
इस मसले पर मार्च 2012 में अदालत ने मंत्री के खिलाफ भ्रष्टाचार संबंधी कानून के तहत कार्रवाई की अनुमति देने का हुक्म दिया था, मामला मंत्री का था तो राज्यपाल से अनुमति लेनी थी जिसका फैलसा राज्य मंत्रिमंडल करती है. “खातो नथी ने खावा देतो नथी अर्थात ना खाता हूँ ना खाने देता हूँ ” का दावा करने वाली मोदी सरकार की राज्य मंत्रिमंडल ने 27 जून को सोलंकी के खिलाफ केस ना करने का फैसला किया, राज्यपाल डॉ कमला बेनीवाल जी ने राज्य मंत्रिमंडल के फैसले को पलटते हुए आधिकारिक तथ्यों के आधार पर किस करने की अनुमति दे दी . राज्य सरकार ने सुप्रीम कौर्ट के निर्णय को अपने बचाव में रखा तो आवेदक ठेकेदार इशाक ने मोदी सरकार की नींदा हराम करने वाले मुकुल सिन्हा की मदद से मंत्रिमंडल के फैसले को अदालत की अवमानना करार का पक्ष रखा. बात विधायिका और न्यापालिका में टकराव की देख कोर्ट ने आवेदक के अवमानना वाली बात को ख़ारिज करते हुए अदालत ने कहा की राज्य मंत्रिमंडल के फैसले के इतर भी राज्यपाल फैसला कर सकते है साथ ही मंत्रीजी की भी बचाव वाली याचिका खारिज कर दी है. अब केस चलना तय है.
चुनाव व् केस में क्या सम्बन्ध हो सकता है हज़ारो केस चल रहे है तो ये बात जान लीजिये की उत्तर प्रदेश में भी बाबूलाल कुशवाहा पर कुछ कुछ इसी प्रकार के इल्जाम नदियों से रेत खनन के लगे थे जो इसी साल हुए यूपी चुनावों में खूब उछाला गया था. सोलंकी मछुआरो के कोली समाज से आते है और ज्यादातर तालाब के कॉन्ट्रेक्टर मुस्लिम बिरादरी से अब कॉन्ट्रेक्टर कैसे फायदा देते है इस पर महाराष्ट्र में हंगामा हो ही रहा है . चूँकि मंत्रीजी ने स्वयं की बिरादरी और स्वयं के ठेकेदारों को लाभान्वित कर एक समुदाय विशेष के ठेकेदारों से पंगा कर लिया तो साम्प्रदायिकता को पोषित व् विरोध करने वाले दोनों हे लोगो के लिए चुनावी हथियार है.
बात इतने से नहीं ख़त्म होती सोलंकी मतस्यपालन मंत्रालय में छोटे मंत्री है जो सिर्फ ठेकेदारों की संस्तुति कर सकते है अंतिम फैसला तो कैबिनेट मंत्री को ही लेना होता है. ठीक वैसे ही जैसे कोयला मंत्री जायसवाल सिर्फ किसी की संस्तुति करते है पर कोयला का वंटन केंद्र सरकार ही करती है . अब तालाबो में मछली पकड़ने के आवंटन अंतिम फैसला तो कैबिनेट मंत्री दिलीप संघानी ने ही किया है जो खुद पिछड़ी लेवा पाटिल बिरादरी से आतें है यानी एक तीर से दो दो मंत्री साफ़ …

..... अब अपने परिवार से.

गाँधी परिवार से कांग्रेस , संघ परिवार से भाजपा सत्तानासीन हुई ..... अब अपने परिवार से. समाजवादी पार्टी का नेतृत्व करने वाले मुलायम सिंह यादव का कुनबा सियासत में इस तरह रमा कि सूबे का सबसे बड़ा सियासी घराना बन चुका है। मुलायम परिवार के छह सदस्य सांसद या विधायक हैं। एक कीर्तिमान यह भी है कि लोकतंत्र के चार प्रमुख सदनों विधानसभा, विधान परिषद, राज्य सभा और लोकसभा में इस परिवार का प्रतिनिधित्व है। अब इस परिवार के एक अन्य सदस्य का भी जल्दी ही राजनीति में दाखिला होने के संकेत हैं। पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव और प्रवक्ता प्रो. रामगोपाल के सुपुत्र अक्षय को फिरोजाबाद संसदीय क्षेत्र से लोकसभा चुनाव में उतारने की तैयारी शुरू हो चुकी है। अब सियासत में अक्षय, मुलायम सिंह परिवार के सातवें सदस्य होंगे। बकौल मरहूम छोटे लोहिया जनेश्वर मिश्र यह संघर्ष का वंशवाद है।

अभी कुछ दिनों पूर्व उत्तराँचल में भी पुत्र प्रेम जागृत हो गया था जब मुख्यमंत्री बहुगुणा ने अपने पुत्र को अपने द्वारा खाली लोकसभा सीट पर चुनाव में खड़ा किया है ,, भाजपा के प्रेम कुमार धूमल के पुत्र अनुराग ठाकुर को  तो भाजपा ने राहुल की टक्कर में युवा चेहरे के रूप में भी पेश किया था. बादल परिवार से भी चार लोग सांसद या विधायक  हुए अब वहा भी वे लोग भतीजे का विरोध झेल रहे है. हरियाणा में मुख्यमंत्री भूपिंदर  हुड्डा के पुत्र दीपेंदर हुड्डा सांसद है, ओम प्रकाश चौटाला  के पुत्र अजय चौटाला तो अब हरियाणा में काफी वरिष्ठ हो गए है फिर चंदर मोहन व्  कुलदीप विश्नोई भी पूर्व मुख्यमंत्री भजनलाल के पुत्र है. फारुक अब्दुला के बाद उमर, अब्दुल्लाह वंश के नए अधिपति है  वसुंधरा राजे उस तरह से राज्य में एकाधिकार नहीं रखती सो राजस्थान व् मध्यप्रदेश को छोड़ दें तो पूरा उत्तर भारत इसकी चपेट में है 

अधिकार यात्रा में मुख्यमंत्री नीतीश ने दिखाए अपने अधिकार

अधिकार यात्रा में मुख्यमंत्री नीतीश ने दिखाए अपने अधिकार



एस०  पी०  शिव कुमार झा के नेतृत्व में स्पेशल जांच टीम (SIT) अब खगडिया में नीतीश विरोधियो को खंगालेगी. क्या बिहार में अब मुख्यमंत्री को,दिल्ली में विज्ञान भवन  में हुए प्रधानमंत्री के विरोध जैसी बातो का सामना करना पड़ रहा है??

क्या जनता वाकई कुशासन से त्रस्त है या फिर किसी राजनीतिक दल की गुंडई ??

वैसे इतनी महंगाई होने पर भी किसी को भी हड़ताल के लिए बोल दीजिये तो सांप सूंघ जाता है,ऐसे में क्या इस तरह उग्रता पूर्वक दंगा करने को आमजन तैयार हो जायेंगे ये फैसला जनता को ही करना है, फिलहाल नीतीश के सलाहकारों के लिए दुष्यंत कुमार की ये पंक्तिया बहुत ही सटीक है

मत कहों आकाश में कोहरा घना है
ये किसी की व्यक्तिगत आलोचना है .

भारत जीत और पाकिस्तान हार गया



क्या वाकई भारत जीत गया और पाकिस्तान हार गया है,फिर उनकी टीमों का क्या हुआ जो खेल रहीं थीं ?

समझ नहीं आता,खेल हमें जज्बाती बना देते है की हमारे असल जज़्बात खेलो के बहाने बाहर आते है ?

लोकनाथ गली के मिठाई और इलाहाबाद की अगुवाई

कभी छात्र राजनीति के परचम  रहे   इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के  चुनाव बड़ी ही खामोशी से निकल गए, जेएनयु व् दिल्ली  विश्वविद्यालय छात्रसंघ के छात्रसंघ चुनाव से कम महत्वपूर्ण नहीं है इलाहबाद  विश्वविद्यालय छात्रसंघ के चुनाव पर इसे सुलभता कहे या अनाकर्षण की इलाहाबाद में संपन्न हुए इन चुनावों को व्यापक कवरेज नहीं मिली वो भी जब, जबकि इस  विश्वविद्यालय  व्  छात्रसंघ  के कई छात्र आज पत्रकारिता और राजनीति दोनों के शीर्ष  पर बैठे है.कोई अपवाद ना ना बनते हुए मुझे भी डी जी की पोस्टो से ही खबरे  मिलती रही है. कल चुनाव के नतीजें  भी आ गए है जी ने चुनाव जीत लिया है  वे अध्यक्ष पद पर समाजवादी छात्र सभा के प्रत्याशी के रूप में खड़े थे उन्हें कुल    2,543 वोट मिले तो उनके निकटतम प्रत्याशी अभिषेक  सिंह ' सोनू' को 1491 वोट  मिले उनके साथ ही 28 सालो बाद कोई महिला उपाध्यक्ष  चुनी गयी है साथ ही ये  आइसा के लिए भी कामयाबी का वक़्त है, शालू ने ये पद  अपने निकटतम प्रत्याशी आलोक  कुमार  सिंह से  925 वोटो से जीता  है    जी, आइसा की  एक और जीत  पर ज़रा ध्यान दीजिये.

इन सब बातो के अलावा इन चुनावों में दुखद बात के रूप में ये उभरी के इन चुनावों में  पहली  बार गोलीबारी करने की वजह से गैंग्स्टर एक्ट में दो  छात्रों को जेल में भेजा गया हो और दोनों हेई चुनावो में प्रत्याशी रहे हो, फिर वही से बैठे बैठे  छात्र  चुनाव जीत  गया हो. गिरफ्तारी और आरोप  सिद्ध  ना होने   के तकनिकी आधार पर ही सही विश्वविद्यालय ने महामंत्री पद पर  चुनाव लड़ रहे अभिषेक सिंह माइकल को चुनाव लड़ने की इजाजत दी जिसमे वे  विजयी भी  हुए हैं. अन्य महत्वपूर्ण पदों में संयुक्त मंत्री पद पर गयाशंकर यादव ने काफी कांटे की टक्कर के बाद अंकिता  रानी  जैसवाल को 171   वोटो से हरा दिया यादव को कुल 1,677 वोट मिले व् जैसवाल को 1,506 वोतेस साथ ही इसी पद पर  मोहम्मद  गौस  इदरीसी ने भी 1,024 वोट पाकर अपनी दमदार उपस्तिथि का इशारा से दिया. सांस्कृतिक मंत्री पद पर देवंद्र मणि मिश्र सवाराधिक अंतर से विजयी रहनी वाले प्रत्याशी बने उन्होंने  आकांक्षा  मिश्र को करीब 1,398 वोटो से हराया .

गौरतलब बात ये है की एम् ए (दर्शन शास्त्र) के ही अध्यक्ष व् सांस्कृतिक मंत्री अब ऐसे में इन दोनों से इलाबाद विश्वविद्यालय में छात्र राजनीति में हो रहे सांस्कृतिक पतन पर ख़ासा काम करने की जिम्मेवारी रहेगी.

अपने ही खून से चले इनका इंजन धकाधक


प्रकाश झा तुस्सी ग्रेट हो अभी उनकी आगामी फिल्म चक्रव्यूह का ट्रेलर देखा, देखने से लगता है उन्होंने जनवादी नाट्य को सजीवता से परदे पर रखा है. सम्यक और जनवादी होने के लिए क्रन्तिकारी होना जरूरी नहीं, जरूरत बस उस दृष्टी, उस विश्वास के साथ लगे रहने की है जो सम्यक ही नहीं शाश्वत हो.

बहुजन क्रान्ति के प्रेणता : महात्मा गाँधी



नमक आन्दोलन सही मायनों में पहली बहुजन क्रान्ति है जब गाँधी जी कहते है 1 लाख ब्रिटिश 35 करोड़ भारतीयों को गुलाम नहीं बना सकते, अपना कानून नहीं थोप सकते. 'भारत का नमक भारत का है' कह कर अंग्रेज़ी साम्राज्य की नींव हिलाने वाले गाँधी जी ने भारत के बहुजन को उपनिवेशिक अल्पजन के कानून को अस्वीकार करने के लिए प्रेरित किया. बाद में सविनय अवज्ञा आन्दोलन भी उसी तर्ज पर चला जहा 'ब्रिटिश भारत' की उपनिवेशवाद से त्रस्त बहुसंख्यक जनता ने समर्थन किया.गांधीजी अहिंसावादी,समाजवादी, राष्ट्रवादी, ग्राम्यवादी, स्वावलंबनवादी तो शायद रहे ही होंगे उनके दर्शन से ऐसा दिखाई भी देता है, पर साम्यवादी थे की नहीं इस बात का पक्का सबूत नहीं है पर वे निश्चित रूप से आज की इस व्यवस्था से भी खुश नहीं होते.

आज गांधी जयंती है , सो बहुत सारे कार्यक्रम होंगे कुछ सरकारी कुछ सरकार की कृपा दृष्टी के लिए , बहुत सारे लोग तो शनिवार से ही छुट्टियां मनाने के लिए निकल गए है तो कुछ घर में ही राष्ट्रीय अवकाश मन रहे है .आभासी दुनिया भी प्रयोजन पड़ने पर सक्रीय हो पड़ता है इसलिए वह भी खूब दो अक्टूबरमय हो जायेगा बहुत सारी पोस्ट्स गढ़ी व् अपनी वाल पर जड़ी भी की जायेंगी, यानी कुल मिलाकर गांधीजी हमारे अंतःकरण पर छाए रहेंगे .







ये चित्र न्यूजीलैंड के मशहूर फोटोग्राफर ब्रायन ब्रेक ने सन 1961 में छपी इंडिया - बाई जोए डेविड ब्राउन एंड एडिटर्स इन लाइफ नाम की पुस्तक के कवर के लिए लिया था. ये चित्र भी यही बात कहना चाहता है की फूल माला ,अगरबत्ती लगा कर नेताओ रहनुमाओं को पूजने की अपेक्षा उनके आदर्शो को पूजना पड़ेगा, लगभग व्यंग्य करते हुए चित्र में लिखा गया है की" लोग हर बात में, गांधी जी को आड़ बना लेते है और अपने राजकर्मो में "ऐसा गांधी जी ने कहा था " जोड़ देते है. सरकार अपनी नीतियों के लिए विपक्ष अपने विरोध के लिए सब उसी काम को दिखावे की तरह कर रहे है."

अब जरा याद कीजिये की ये ना केवल नेता बल्कि हम खुद भी करते है, प्याज 20 रुपये किलो से 30 हो गया है रेल किराया नहीं बढाया क्यूंकि वोटर नाराज़ हो जाएगा पर रेल में माल ढुलाई का किराया बढ़ा दिया सो नाशिक से आने वाला प्याज दस रुपये महंगा हो गया इसी तरह से डीजल का रेट बढ़ा तो हिमाचल के सेब व् पहाडी आलू महंगे हो गए.1961 में जो बात तस्वीर में कही है वो आज भी दिखती है, चाहे वो संसद में उपद्रव हो या महारष्ट्र में सिंचाई राष्ट्रवादी और गांधीवादी दोनों ही मिलजुलकर लीकेज युक्त तंत्र की यथास्तिथिवाद बनाये हुए है. मन में रोष आता है फिर सोचते है छोड़ यार,सब चोर है, गांधीजी से सत्य के लिए जुझारूपन से अड़ने का बात को छोड़ पिकनिक मानना ज्यादा सुहाता है. निजी जीवन में रघुपति राघव, राजा राम,जितनी सैलरी, उससे आधा काम करने के बाद गांधी व् उनके दर्शन को पुराने जमाने की बात कहेंगे. गांधी जी को प्रासंगिक बनाने के लिए कोई नया तामझाम नहीं करना है, बस अपनी बात को रखना है, गांधीवाद कोई राजनीति नहीं है, समाज व्यवस्था नहीं ये तो बस वो जादुई मन्त्र है जिसने हमें संदेह की स्तिथि में या हमारे अहम् के हावी होने पर उबरने का सबसे आसान तरीका दिया है, ऐसे वक़्त में सबसे गरीब और सबसे कमजोर आदमी का चेहरा याद कर, अपने आप से किया सवाल की क्या मेरे इस कदम से उस आदमी को कोई फ़ायदा पहुंचेगा ही असल में गांधीवाद है

जेंटलमेंन का गेम नहीं है राजनीति

"ये यूपीए सरकार है बॉस, न तमीज से सरकार चलाया जाता है, और न तमीज से बोला जाता है".

उनकी बात में दम है जिस तरह से पिछले दिनों प्रवक्ता मनीष तिवारी, महासचिव दिग्विजय सिंह जी, कबिनेट मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा जी और आज श्रीप्रकाश जायसवाल जी ... लगता है घोटालो ने सवाल इतने खड़े कर दिए है की जवाब देते नहीं बन रहा सो बार बार जुबान फिसल जाती है. शाम को जब सैर से लौटी तब शायद न्यूज एक्सप्
रेस पर, बा (कस्तूरबा गांधी) व् महात्मा गांधी के 62 साला रिश्तो पर एक संस्मरण आ रहा था ... रिश्तो की गहराई से आत्मविभोर हो गयी, घर में ही कहा 62 साला रिश्ता आजकल 62 हफ्ते भी भारी हो जाते है, फिर मंत्रीजी बात सुनी मन खिन्न हो गया और कलम चल पड़ी ... लिख रही हूँ अगर पहुँच सके तो गांधीवाद की राजनीति करने वाले कम से कम आनुष्ठानिक रूप से ही सही आज तो संपूर्ण गांधी वांग्मय का पाठ कर लेते.

ताज़ा विवाद की शुरवात मंदिर  की तुलना टायलेट से कर जयराम ने की है
 

गुजरात गाथा



साल की शुरुवात यूपी चुनावों के साथ हुई थी तब भी ऐसी ही श्रंखला वाल पर डाली थी अब साल का अंत भी चुनावो के साथ हो रहा है. चुनावी बिगुल फूंक दिया गया है भाजपा शासित के दो राज्य हिमाचल और गुजरात में चुनाव है, सरगर्मिया शुरू है. दशहरा दिवाली के साथ ही चुनाव भी काफी गुंजायमान होंगे पटाखो की गूंज तो अभी से सुनायी भी देनी शुरू हो गयी है. परसों नमो का छोड़ा राकेट 10 जनपथ से यु टर
्न लेकर वापिस नमो के छज्जे में फटा तब फिर उसके बाद अपने आँगन में 10 जनपथ वालो का अनार जलाना तो बनता ही है.

मौत के सौदागर वाले व्यक्तिगत हमले से पिछली बार मिली किरकिरी से दूर रहने का नतीजा है की इस बार हमला मुद्दों पर हुआ है. बी के हरिप्रसाद ने पिछला चुनाव व्यक्तिवादी कर दिया था इस बार मोढवाडिया सरकारी कामकाज की बखिया उधेड़ रहे है. परसों के नमो ने व्यक्तिगत हमले कर चुनाव को उसी बात को दोहराना चाह रहे थे पर कांग्रेस इस बार सतर्क है, नमो को उनके अखाड़े में लड्ने की बजाये अपने मैदान में ललकारा गया है.

नमो इस बार ना सिर्फ गुजरात के लिए बल्कि दिल्ली की दावेदारी के लिए भी लड़ेंगे गुजरात है तो पूरे देश में मीडिया कवर करेगा, गुजरात का चुनाव यूपी चुनावों की तरह ही राष्ट्रव्यापक होगा , नमो ने भी गुजराती छोड़ राष्ट्रीय स्तर के लिए हिंदी में भाषण शुरू कर दिया है यानी चुनावी भाषण के जरिये पूरे देश से मुखातिब होंगे. जब वे ऐसा करेंगे तो कुछ उनके अपनी पार्टी के दिल्ली में बैठे साथीयों को उनके बढ़ते कद से चिंता हो जायेगी फिर अल्पसंख्यको के सारे हितैषी अपने अपने डमरू बजा तमाशा कर उनको और कवरेज देंगे.

अंत में कल दिबांग कह रहे थे की इस बार मोदी हिन्दू मुस्लिम का ध्रुवीकरण नहीं कर सकते क्यूंकि ये ध्रुवीकरण 2014 में उनको प्रधानमन्त्री पद की दौड़ में पीछे कर देगा .... सो कुल मिलाकर अगर कांग्रेस की रणनीति ज़मीनी मुद्दों पर हमले की रही तब नमो की मुश्किलें बढ़ी समझिये.

ऍफ़० डी०आई० और राष्ट्रिय राजनीति का चरित्र

3 इडियट्स में आमिर खान : ये चटनी बड़ी निराली है, ये लोगो के चरित्र पता करने के काम आती है

2 यूपीए में मनमोहन सिंह : ये ऍफ़डीआई बड़ी निराली है, ये पार्टियों के चरित्र पता करने के काम आती है

जनसत्ता के वरिष्ठ पत्रकार शैलेन्द्र श्रीवास्तव जी लिखतें है "आलोचना और विरोध की परवाह किए बगैर इस सरकार ने पेंशन में 26 फीसद एफडीआई को मंजूरी दे दी और बीमा क्षेत्र में एफडीआई की सीमा
 को 26 फीसद से बढ़ाकर 49 फीसद कर दिया। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में यह फैसला इससे पहले सरकार ने 14 सितंबर को मल्टी ब्रांड रिटेल में 51 प्रतिशत एफडीआई की मंजूरी दी थी। साथी ही नागरिक उड्डयन क्षेत्र में एफडीआई नियमों में और ढील देने का फैसला किया था। क्या गजब है कि कथित आर्थिक सुधारों पर दूसरे दौर के फैसले से पहले ही मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा,नामदल, तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, बीजू जनता दल आदि ने बीमा और पेंशन में एफडीआई को मंजूरी का विरोध करने का ऐलान किया था। पर सरकार को किसी की परवाह नहीं। जाहिर है इस फैसले का विरोध तय है। विपक्षी दल इस फैसले की निंदा कर रहे हैं।"

सवाल ये है की क्या हर बार की तरह वे इस बार भी बस बाहर सरकार की निंदा करेंगे और संसद के अंदर सरकार का समर्थन ?

रियल एस्टेट के अनरियल रिश्ते


कांग्रेस पार्टी की सबसे ताकतवर नेता और अध्यक्ष सोनिया गांधी जी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा भारत के चंद  प्रतिभाशाली लोगो में है जो व्यसाय खासकर रियल एस्टेट की दुनिया में उभरता सितारा बनकर उभरें है. राजनेताओ के रिश्तीदारो ने राज पदों पर मुनाफ़ा कमाया हो यह कोई नयी बात नहीं पडोसी मुल्क में आसिफ अली ज़रदारी को बेनजीर के शासनकाल में मि० टेन परसेंट कहलाते थे, संजय गांधी ने जिस तरह मारुती में भूमिका निभाई कुछ कुछ वैसी ही व्यावसायिक भूमिका इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुहार्तो के पुत्र हुतोमो  ''टोम्मी '' मंडलापुत्र ने निभानी चाहि जिसके फलस्वरूप उन्हें राष्ट् से भगोड़ा तक घोषित होना पड़ा, खुद राजनीति में आने से पूर्व राहुल गांधी अपनी आई टी कंपनी चला चुके है .

हैंडीक्राफ्ट और कस्टम ज्वैलरी का सामान्य व्यवसाय करने वाले राबर्ट ने  धीरे धीरे रियल्टी सेक्टर में  एंट्री की जिसमे उनकी मदद  देश के सबसे बड़े प्रॉपर्टी डेवलपर डीएलएफ ने की, जिसने ना सिर्फ तथाकथित रूप से अडवांस या बिना गिरवी रखे कर्ज दिया साथ ही  कंपनी ने रॉबर्ट का अपना हिस्सेदार भी बनाया. बस इसी बात से लैस होकर गांधी जयंती से नेता बने अरविन्द केजरीवाल ने  प्रेस कांफ्रेंस कर जनता के सामने ये तथ्य रख कर  दावा किया कि वाड्रा की पांच कंपनियों ने बिना कोई कारोबार किए 50 लाख रुपये लगाकर 300 करोड़ की जायदाद अर्जित कर ली है जिसके प्रमाण के रूप में वे कंपनी शुरू करते वक़्त पूंजी जिसका विवरण वाड्रा ने कंपनी  पंजीयक के दस्तावेजो में की है. तीन साल में वाड्रा के  पास 300 करोड़ की संपत्ति आ गई, जिसकी मौजूदा बाजार कीमत 500 करोड़ बलाई जा रही है बस यही बात इस पूरे मामले को संदिग्ध बना देती है.  ओलम्पिक में मेडल  से लेकर अर्जुन टैंक बनाने तक में हम दशको का समय ले लेते  है तब ऐसी कौन सी विद्या से लैस होकर वाड्रा ने इतने जल्दी इतना ऐसेट बना लिया है और बना भी लिया है तो कैपिटल गेन टैक्स का क्या ? रखे रखे तो नाहे भाव बढ़ गए ये तो बेचें खरीदने की लगातार प्रक्रिया से बढ़ते है तब टैक्स तो बनता ही है.

बात को और साफ़ करें तो देखेंगी की बैलेंस शीट के मुताबिक़ डीएलएफ ने बिना किसी गारंटी या ब्याज के वाड्रा को 65 करोड़ रुपये दिए और फिर उसी रकम से उन्होंने डीएलएफ की ही जायदाद मार्किट मूल्य से काफी कम भाव में  खरीद ली जिसमे कंपनी ने गुड़गांव के मैग्नोलिया अपार्टमेंट में सात फ्लैट वाड्रा की कंपनियों को महज 5.2 करोड़ में दे दिए जिनका  बाजार भाव कम से कम 35 करोड़ था. एक अन्य सौदे में औरोलियाज अपार्टमेंट में एक पेंटहाउस सिर्फ 89 लाख में दे दिया, जिसकी कीमत बाज़ार में करीब  20 करोड़ थी, यहाँ तक की ना जाने कौन सी मजबूरी में इतने पैसे होने के बावजूद  कंपनी ने अपना दिल्ली के साकेत स्थित डीएलएफ हिल्टन गार्डेन होटल की 50 फीसद हिस्सेदारी सिर्फ 32 करोड़ में वाड्रा को बेंच दी जबकि उसका बाज़ार भाव 150 करोड़ था.इस बात को लेकर भाजपा प्रवक्ता ने भी चौका लगाते हुए पूछा 'कांग्रेस सरकारों ने डीएलएफ को सस्ते में जमीन दी और बदले में डीएलएफ ने वाड्रा को फायदा पहुंचाया। डीएलएफ वाड्रा के लिए इतना उदार क्यों थी? इसकी जांच होनी चाहिए'.

अभी ज्यादा दिन नहीं बीते है जब मीडिया ने देश से सामने उजागर किया था की अपना जीवन नॉवल बेचने और वीसीपी किराये पर देकर चलाने वाला गोपाल कांडा जैसे ही गुडगाँव के  रीयल एस्टेट के  धंधे में आया रातो रात अरब पति बन गया था. उस वक़्त उसने गुड़गांव की सिकंदरपुर मार्बल मार्केट को कोर्ट के आदेश के बाद अलग जगह विस्थापन कर नए  प्लॉट आवंटन में काफी माल बनाया अब जाहिर है ये सब उसने बिना सरकारी सहयोग के तो किया नहीं होगा क्यूंकि जमीन सरकार की थी.

 आम आदमी के नाम पर अपना पर अपना अपना हिस्सा समेट कर नेताओं ने संसद चलने नही दी पर आम आदमी
एक अदद घर के लिए किस कदर से हैरान परेशान है उसका मुजाहिरा आवेदनों  की संख्या से लगती है,इस समस्या से निपटने के लिए सरकारें विवश है सो निजी
क्षेत्र  को आगे  बढाया जाना जरुरी था. अब हमारे यहाँ प्रक्रिया इतनी मजबूत
बनती  है की उससे कामकाज ठप्प सा हो जाता  है सो निजी क्षेत्र  भी मजबूर  हो जाती है और मजबूरी निचले पायदान के अफसरों के लिए आय का स्त्रोत बन जाती है.  निजी
क्षेत्र  में जो
कंपनिया मजबूर नहीं होती वे सरकार से ज़मीन मजबूर करके ले लेती है और इसी मजबू
री को पैदा करने के लिए रसूखदार और रियल एस्टेट कंपनिया मिल जाते है. 

इस माह  सरकार ने रियल एस्टेट को विदेशी निवेश के लिए खोल दिया है पर कानूनी ढांचा काफी लचर है  रीयल एस्टेट से जुड़ा बिल संसद में धुल खा रहा है . पहले नोयडा एक्स्टेंशन के किसान मुआवजे के विवाद में फंस जाने से हदासे हुए लोग अब वहा बेताहाशा मूल्य वृद्धि से तंग है, दबी छुपी जुबान में कुछ लोग कह रहे है बिल्डरों के द्वारा 'बक्षीश' देने की वजह से ये अप्रत्याशित महंगाई आयी है. लगभग सभी बिल्डर अपने नॉयैडा प्रॉजेक्ट्स मे एक तरफ़ा अग्रीमेंट बना रहा है. किसी भी बाइयर के पास कोई अधिकार नही है सिवाय उनकी शर्तो को मानने और साइन करने के. कोई भी बिल्डर नही बताता की सर्विस टॅक्स और स्टंप ड्यूटी किस किस चीज़ पर लगेगी और उनकी दर क्या होगी. बिल्डिंग प्लान, साएट प्लान, लोकेशन प्लान, मास्टर प्लान, फ्लोर प्लान, ले आउट प्लान मे क्या फ़र्क है इसकी जानकारी लिखित मे कोई नही दिखाता. पर्यावरण क्लियरेन्स, सेफ्टी क्लियरेन्स और बाकी जानकरी तो बिलकुर नही मिलती. टोटल क्लियरेन्स कितनी होती है और बिल्डर कितने क्लियरेन्स ले चुका है बाइयर को कुछ नही पता. सूपर एरिया तो सभी बताते है लेकिन लगभग कोई भी ऐक्चुयल कार्पेट एरिया नही बताता. बहुत गड़बड़ है सिस्टम मे पर अपनी टैक्स की दर को आसानी से बढाने वाली सरकार सुप्त है, इससे उसके खजाने को नुक्सान और चुने हुए 'सरकारों' को फायदा हो रहा है. इस सरकारी उदासीनता के मद्देनज़र जनता को बस न्यायालय , कॉम्पिटिशन कमिशन ऑफ इंडिया व् ग्राहक फोरम से ही आशाएं है.