ब्लाग्मंत्र : जिस तरह आंसू के लिए मिर्च जरूरी नहीं, वैसे ही बुद्धिमता सिद्ध करने के लिए ज्यादा से ज्यादा कमेंट्स व् उच्च्श्रलंखता जरूरी नहीं

Thursday, July 7, 2011

शबरी कुम्भ व् नर्मदा कुम्भ- आस्था या ध्रुवीकरण

‘यदि मुझे कानून बनाने का अधिकार प्राप्त हुआ तो सबसे पहले धर्मातरण को प्रतिबंधित करूंगा।’ महात्मा गांधी ने यह बात भले ही 1935 में कही हो, लेकिन मंडला में हुए नर्मदा कुंभ ने इसे फिर ताजा कर दिया है।


धर्म को जीवन में धारण करने का अर्थ- त्रिपुण्ड धारण करना अथवा रामनामी चादर ओढ़ कर मन्दिर-मन्दिर मत्था टेकते रहना य़ा हर शुक्रवार को मस्जिद जाकर नमाज पढ़ लेना अथवा सन्डे-सन्डे गिरिजा में जाना और - अपने अपने घर वापस आने के बाद फिर वैसा ही पशुओं जैसा जीवन जीना नहीं है. इंग्लैण्ड में अभी केवल १६ % लोग ही चर्च में जाते हैं, बाकी बचे ८४% धर्म क्या है इसको जानने में लगे है पर भारत यूरोप तो नहीं जहाँ धर्म सत्ता या संविधान से अलग हो, यहाँ कागज़ पर भले ही हो पर धर्म के आधार पर जन्मे इस राष्ट्र में धार्मिक ताकतों ने कई बार सत्ता पर अपनी पकड़ बनायीं है | जिस तरह से पोलिटिकल इस्लाम से यूरोप और अमेरिका तंग है, इवेनगलिस्ट चर्च से उत्तर अफ्रीका व् मध्य एशिया त्रस्त है, उसी तरह भारत भी अपने धार्मिक अभिव्यक्तियों या यू कहे धर्मावलम्बियों की क्रिया-प्रतिक्रिया के द्वन्द में उलझ रहा है.


उडीसा, झारखण्ड, छत्तीसगढ़, पूर्वोतर के जनजातीय क्षेत्रो व् केरल,तमिल नाडू और कर्नाटका के मछुआरो में इसाई मिशनरियों के द्वारा धर्मांतरण कोई नई बात नहीं है और ना ही संघ द्वारा उस क्रिया की प्रतिक्रिया, इस द्वन्द से क्षुब्द होकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, “हम उम्मीद करते हैं कि महात्मा गांधी का जो स्वप्न था कि धर्म राष्ट्र के विकास में एक सकारात्मक भूमिका निभाएगा वो पूरा होगा. किसी की आस्था को ज़बरदस्ती बदलना या फिर ये दलील देना कि एक धर्म दूसरे से बेहतर है उचित नहीं है. इसके बदले अदालत ने अब कहा है कि “इस बात में कोई विवाद नहीं कि किसी और की धार्मिक आस्था को किसी तरह से भी प्रभावित करना न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता. ”सर्वोच्च न्यायालय ने दारा सिंह और उनके साथी महेंद्र हेंब्रम को उम्र क़ैद की सज़ा सुनाते हुए एक तरह से उनके काम को ऐसा कह कर न्यायोचित ठहराने की कोशिश की थी कि चूंकि उस इलाके में धर्म परिवर्तन चल रहा था, उसी परिप्रेक्ष्य में ग्राहम स्टेन्स की हत्या हुई थी.


पशु और मनुष्य में धर्म ही है जो अंतर करती है , परन्तु धर्म का मतलब आज अपनी अपनी संख्या बढ़ाना रह गया है यही कारण है की कुम्भ जैसे धार्मिक आत्मिक शांति प्रदान करने वाले आयोजन अब सामाजिक व् धर्मावलम्बियों को किसी और पूजा पद्धति की तरह जाने से रोकने के लिए किये जाने लगे है | ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती इन सामाजिक कुम्भो को धर्मांतरण, नक्सलवाद तथा हिंसा के खतरों के प्रति जनजागरण व् जनजातीय लोगो से मेलमिलाप तथा उन्हें राष्ट्रीय मुख्यधारा से जोड़ने का एक महत्वपूर्ण प्रयोग मानते है | उनका मानना है जिस प्रकार धार्मिक कुम्भ दक्षिण से उत्तर की तरह आता है उस्सी तरह सामाजिक कुम्भ पश्चिम से पूर्व तक चलेगा इसी कड़ी में जुड़ते हुए मंडला का कुम्भ आयोजित किया जा रहा है | पश्चिमी राज्य गुजरात के डांग में होने वाले शबरी कुम्भ के बाद के नर्मदा कुम्भ फिर अन्य प्रस्तावित उड़ीसा कुम्भ और अंत में अरुणाचल में एक कुम्भ इस श्रंखला को पूरा करता है |


मप्र ईसाई महासंघ के संयोजक फादर आनंद मुटुंगल व प्रदेश संगठक मंत्री जैरी पाल ने पत्रकार वार्ता में यह आरोप लगाया है की मंडला के कुंभ मेले में ईसाई समाज के खिलाफ पर्चे बांटे जा रहे हैं। ईसाई समाज के बारे में दुष्प्रचार वाले होर्डिग्स लगाए गए हैं। कई ईसाइयों से कथित रूप से हिंदू धर्म अपनाने के आवेदन भरवाए गए हैं। श्री मुटुंगल का कहना है कि मेले में धर्मातरण होने की शिकायतों की सत्यता पता करने धर्म स्वतंत्रता अधिनियम के तहत शासन को जांच करानी चाहिए।


इसाई धर्म प्रचारक जॉन दयाल जो कांग्रेस की कृपा से राष्ट्रीय एकता परिषद् के सदस्य है अपनी टीम के साथ मंडला का दौरा करने के बाद लिखते है की घृणा कैम्प (कुम्भ में लगे शामियानो को) बनाया जा रहा है उनके द्वारा कभी भी हिन्दू जनजागरण के कार्यक्रमों को अच्छा नहीं कहा जायेगा यह तो तय है पर उनकी कुछ बातें हास्यापद है जैसे बाहरी लोगो के आने से व्यवहारिक दिक्कते होंगी, महामारी फैल सकती है, बलात धर्मांतरण होगा आदि आदि ज्यादातर समय वो शबरी कुम्भ, असीमानंद तथा नर्मदा कुम्भ व्यय पर व्यंग करते दिखे क्योंकि जो वो देखने गए थे, शायद वो उन्हें मिला नहीं |

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