ब्लाग्मंत्र : जिस तरह आंसू के लिए मिर्च जरूरी नहीं, वैसे ही बुद्धिमता सिद्ध करने के लिए ज्यादा से ज्यादा कमेंट्स व् उच्च्श्रलंखता जरूरी नहीं

Sunday, November 4, 2012

हिमाचल में छात्र राजनीति से निकल तीसरी ताकत बन चुकी है सी पी आई (एम्)


मार्कस्वादी कम्युनिस्ट पार्टी अब अपने दायरे को आगे बढाते हुए इस बार अपने परंपरागत तीन राज्योँ बंगाल केरल व् त्रिपुरा से आगे बढ़ कर हिमाचल में एक सशक्त भूमिका की तैयारी कर रही है. हिमाचल प्रदेश में पिछले कई दशको से भाजपा और कांग्रेस के बीच बारी-बारी से सत्ता का परिवर्तन हुआ मगर सत्ता के इस खेल में तीसरा मोर्चा यहाँ नदारद ही रहा। उत्तर भारत में कमोबेश यही हालत पंजाब, हरियाणा, राजस्थान व् मध्यप्रदेश की भी है, पर पिछले कई वर्षों से मार्कसवादी कम्युनिस्ट पार्टी बहुत ही धीरे धीरे कम से कम दो राज्योँ राजस्थान व् हिमाचल में यह रिक्त स्थान भरने में प्रयासरत है।इन्ही प्रयासों के तहत राजस्थान में पार्टी के एक मात्र विधायक अमरा राम दो बार अलग अलग विधान सभा क्षेत्रो में कांग्रेस के प्रदेश प्रमुखो को हरा चुके है, किसानो के मुद्दे पर वसुंधरा सरकार को झुकवा चुके है तथा बिजली दरो के लिए सफल आन्दोलन कर चुके है।राजस्थान जैसे बड़े राज्य में माकपा का यह आन्दोलन अपने भरसक प्रयासो के बाद भी उसके वृहद मानचित्र पर वो करिश्मा नहीं दिखा पाया जो अपेक्षाकृत हिमाचल जैसे छोटे राज्य में वो दिखाने को तैयार है.


पिछले कुछ समय से हिमाचल प्रदेश में तीसरे  मोर्चे  की जरूरत को महसूस किया जा रहा था जो की पिछले चुनावो में कांग्रेस छोड़कर बसपा पहुंचे प्रदेश के बड़े नेता वीरेंदर कुमार मनकोटिया के नेतृत्व पिछले चुनाव में दिखा भी पर शीघ्र ही उनके पार्टी से मोहभंग हो गया।बसपा के बाद तीसरे विकल्प की इस कमी को माकपा भरने की कवायद में है।माकपा का संगत रातो रात खड़ा नहीं हुआ है करीब तीन दशको से वे हिमाचल की राजनीति में है। इन सालों में बड़ी ही मंथर गति से साम्यवादी छात्र आन्दोलन को स्थापित करने वाली माकपा से जुड़ी स्टूडेंट्स फेडरेशन आफ इंडिया (एस ऍफ़ आई ) पिछले कुछ सालो से तेजी से स्वीकृत किये जानी वाली छात्र संगठन बन कर उभरी है। शिमला हमीरपुर ऊना में छात्र चुनावों में वे लगातार जीत रही है साथ ही सीपीएम् से सम्बद्ध कामगार यूनियन सीटू ने भी काफी तेजी से यहाँ के होटल व्ययसाय व् पर्यटन वर्करो में अपनी पैठ बनाई है।बसपा की तरह सारे राज्य भर में अपने प्रत्याशी खड़े  करने की अपेक्षा माकपा ने समझबूझ कर पंद्रह जगह अपने प्रत्याशी उतारें है जिनमे प्रचार के लिए बृंदा कारत सरीखे माकपा के राष्ट्रीय नेता इसी प्रयास में लगे है।

हिमाचल में पार्टी की कमान राकेश सिंघा के हाथ में है जो वर्षो तक साम्यवादी छात्र आंदोलन से जुड़े रहे है तथा हिमाचल के एक प्रमुख राजनीतिक परिवार से आते है। उनके नाना सत्यानन्द स्टोक्स एक अमरीकी नागरिक थे जिन्होने आजादी के आन्दोलन में भाग लिया था। वे अविभाजित पंजाब से अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य बने और उनके परिवार को ही हिमाचल में पहली बार सेब की खेती को शुरु करवाने का श्रेय जाता है। उनके नाना के आलावा उनके मामा लाल चंद स्टोक्स, शिमला से सटे ठीयोग से विधायक रहे है और उनकी मृत्यु के बाद उनकी मामी व् कांग्रेस की बड़ी नेता विद्या स्टोक्स यहाँ से चार बार जीत चुकी है. महज 73 हज़ार वोटरो वाली इस सीट पर  राकेश सिंघा इस बार इसी सीट से अपनी मामी को कड़ी टक्कर देते नज़र आ रहे है। भाजपा के पूर्व विधायक राकेश वर्मा व् कुसुम्पटी सीट से विद्या को कड़ी टक्कर देने वाले तृणमूल के प्रत्याशी प्रमोद शर्मा इस मुकाबले को चतुर्कोंणीय बना रहे है. पूर्व में राकेश सिंघा शिमला सीट को एक बार जीत कर सबको हैरान भी कर चुके है, जो बाद में उन्हें एक अदालती मामले की वजह से त्यागनी पडी थी।


 मेयर, डिप्टी मेयर  व तीन कारपोरेटर प्रमुख पद जीत शिमला म्युनिसिपल निगम में सफलता हासिल करने के साथ साथ पिछले कई विधानसभा चुनावो में शिमला सीट पर माकपा ने कड़ी चुनौती दी है। ज्ञात हो शिमला कोई ग्रामीण अंचल नहीं यहाँ अच्छी आय व 89 % साक्षरता दर वाली आबादी रहती है सो माकपा का सारा जोर उच्च साक्षरता वाले शिमला जिले की चार सीटो पर अधिक है जो कांग्रेस की वीरभद्र सिंह का किला भी है।इसी जिले की सबसे ज्यादा मार्क्सवाद प्रभावित रहने वाली तीन सीटो में से एक सीट शिमला शहर में माकपा के युवा नेता टिकेन्द्र सिंफ पंवार खड़े है जो की शहर के डिप्टी मेयर भी है। उन्होने पिछले म्युनिसिपल चुनावो में 21,196 मत पाकर भाजपा के देवेन्द्र चौधरी को 4778 मतो से हराया था।इस सीट पर माकपा का इतिहास पुराना है सन 1993 में सिंघा इसे जीते थे तो सन 2003 में संजय चौहान यहाँ दुसरे नम्बर पर रहे थे। शिमला जिले की एक अन्य सीट कुसुम्पटी में पूर्व आईएफएस कुलदीप तंवर को मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी का उम्मीदवार बनाया गया है। दो दशक से सेवा त्याग कर समाज कल्याण में जुटे तंवर की सामाजिक संस्था ज्ञान विज्ञान समिति किसानो के मुद्दे से जुडी रही है और खेती बचाओ जैसा सफल आन्दोलन भी कर चुकी है। मजेदार बात ये है की यहाँ से पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह जहा कांग्रेस उम्मीदवार अनिरुद्ध सिंह के लिए वोट मांग रहे है वही उनके ससुराल वाले उनके साले की पत्नी ज्योति विक्रम सिंह कड़ी चुनौती दे रही है. 59,121 वोटरो वाली कुसुम्पटी सीट करीब दशको बाद अनारक्षित सीट हुई है सो कोई भी मौका गवाना नहीं चाहता सीपीएम् इसी टकराहट में इस बार यहाँ से जीत की उम्मीद कर रही है।

इसके अलावा  बल्ह सुरक्षित सीट पर माकपा की एतिहासिक संघर्ष की कहानी है सन 1972 में सीपीएम् के तुलसी राम एक बार विधायक बन चुके है शायद यही कारण है की अपने सहयोगी हिमाचल लोकहित पार्टी के द्वारा सीट छोड़ने की गुजारिश के बावजूद भी सीपीएम् ने यहाँ से परस राम को उतारा है जो की कांग्रेस के प्रकाश चौधरी व् भाजपा से इंद्र सिंह गांधी को चुनौती देते नज़र आयेंगे . हमीरपुर जिले में छात्र संगठन  से विधानसभा चुनावों में  टिकट पाए अनिल मनकोटिया को मुख्यमंत्री धूमल के खिलाफ उम्मीदवार  बनाया गया है।

सीपीएम् के लाल सूर्य के उदय से हिमाचल की राजनीति में स्थापित दोनों राष्ट्रीय दल बादल की तरह छंट जायेंगे ऐसा अगर ना भी हो तो किसानो मजदूरों की आवाज़ को नया राजनितिक विकल्प जरूर मिलेगा। समाज के इन घटकों को उचित राजनीतिक  स्पेस  ना मिलने से भी दुश्वारिया बढ़ती  फिर माओवाद भी महज 100 कि० मी० की दूरी पर है। हिमाचल मतदाता संख्या 50 हज़ार से एक लाख वोटर प्रति विधान सभा है, इतनी कम मतदाता संख्या होने की कारण पिछली बार करीब पच्चीस फीसद सीटो पर 2500 हज़ार मतों से निर्णय हुआ है।इस चुनावी हकीकत के मद्देनज़र  पिछले दशको में  जिस तरह पूंजीवाद से प्रभावित होकर पहाड़ बेचें गए है उसकी प्रतिक्रियास्वरूप साम्यवाद का उदय होना अवश्यम्भावी है।

पिछले वर्ष अपने हिमाचल प्रवास के दौरान हमारे हिमाचली ड्राइवर, शिमला से कुल्लू जाते हुए एक जगह रूककर हमें एक बड़ी सीमेंट फैक्ट्री दिखाने लगे फिर कुछ कटे पहाड़ और पहाडी जीवन पर उसके दुष्परिणाम को बताया, बाद में इसी फैक्ट्री पर  सुप्रीम कोर्ट जुर्माना लगा दिया था।ऐसे व्यापक असंतोष के साथ साथ  छोटे छोटे मुद्दे जैसे की  सरकार द्वारा  कार्टन फैक्टरी गुम्मा को सस्ते दाम पर बेचने के बाद  बागवानों को अधिक दाम चुका  कर कार्टन खरीदने जाना भी इन बेहद कम अंतर वाले चुनावों में भारी पद सकता है। पालिसी के मामलो में देखा जाए तो  सरकार ने बिजली व ऊर्जा कारपोरेशन को एक भी परियोजना बनाने को नहीं दी तथा सभी परियोजनाएं निजी कंपनियों को सौंप दी है जिससे राज्य के लोगो को नौकरियों व् संसाधनों में उचित  भागीदारी  नहीं मिल पायेगी। हिमाचल के  जिलो की आबादी बहुत ज्यादा नहीं होती फिर भी कई विश्वविद्यालय एक छोटे जिले सोलन में बन गए है सोलन चंडीगढ़ के धनाढ्य वर्ग से 2 घंटे की दुरी पर है. दोनों बडे दल  इन तथ्यों को नज़र अंदाज कर रहें  है पर आखिर कुछ तो वजह होगी की वीरभद्र जी के गृह जिले शिमला व् धूमल जी के गृह जिला हमीरपुर के कैम्पस और ज़मीनी राजनीति लाल हो गयी है.

सीपीएम् की इन चुनावो में कुछ मजबूरियां भी रही है मसलन सामंतवाद के काफी नजदीक रहने वाले कुल्लू के पूर्व राजा महेश्वर सिंह की हिमाचल लोकहित पार्टी से चुनावी तालमेल विचारधारा के मोर्चे पर पार्टी को फांसता नजर आता है, साथ ही सेब बागान के बुर्जुआ लोगो का पार्टी के साथ जुड़ना भी चिंता का विषय है, फिर भी कम्युनिस्ट अपने सबसे अहम चुनावो को इस बार लड़ रहे है.उनके नेता सिंघा  हिमाचल के भद्रलोक में शामिल सेब उत्पादकों की नब्ज जानते है उनका परिवार इसी कारोबार से जुड़ा है, शिमला का बौद्धिक वर्ग उनके साथ जुड़ ही गया है, हिमाचल विश्विद्यालय से नए छात्र नेतृत्व भी मिल रहे है।यह  सीपीएम का यह सबसे अच्छा काल है  यानी अभी नहीं तो शायद कभी नहीं.

Monday, October 29, 2012

महंगाई और गैस की सौदेबाजी

जब देशी पूंजी से रिलायंस ये कमाल कर सकता है तब विदेशी पूंजी से  बीपी या कोको कोला क्या क्या कर सकते है जरा सोचिये..... जार्ज फर्नांडिस जैसे समाजवादी आज कहाँ है?

जो बात हम कहते थे वो आज हो गयी ना सच आज रांची एक्सप्रेस ने स्पष्ट रूप से सवाल पूछ ही लिया है "क्या मोइली अब रिलाइंस के कहने पर काम करेंगे? क्या अब तेल और एलपीजी के दाम बढ़ने वाले हैं?
0केजरीवाल ने आगे कहा कि जयपाल रेड्डी एक ईमानदार मंत्री कहे जाते हैं, इसलिए बतौर सजा उनसे पेट्रोलियम मंत्रालय छीन लिया गया है." एन डी टी वी ने भी आज ये सवाल मंत्रिपरिषद के फेरबदल के मद्देनज़र कर ही दिया है पढ़िए महीनो पूर्व लिखा था .. .......



तकनिकी जानकारों का मानना है की रिलायंस ने जिन दावों के साथ कृष्ण गोदावरी बेसिन के गैस ब्लाको को सरकार से पाया था वह वो उस अपेक्षा पर खरी नहीं उतरी है और ना ही अरबो के सौदों के साथ इस बारात में शामिल बाराती ब्रिटिश पेट्रोलियम की पार्टनरशिप से देश को फायदा मिला है.रिलायंस के प्रमुख तेल फील्ड KG-D6 में कच्चा तेल उत्पादन 37.9 % वर्ष दर वर्ष घटता जा रहा है जोकि मौजूदा समय में 4.94 मिलियन बैरल तेल रह गयी है वही नैचुरल गैस का उत्पादन 23.5 वर्ष दर वर्ष घट के 551.31 बिलियन क्यूबिक फीट हो गया है . रिलायंस इस घटोतरी के बारे में आध्कारिक रूप से कह रही है की “Production from the KG-D6 block has been adversely impacted due to unforeseen reservoir complexities”.

अब भारतीय मीडिया और पत्राकरिता जगत ने भी कभी इन ना देखे जाने वाले कारणों का पता नहीं लगाया, क्यूंकि वे भी इसके धन से मैनेज हो जातें है .कुछ लोगो का मानना है की ब्रिटिश पेट्रोलयूम को 7.2बिलियन डालर में पिछले साल कंपनी ने ब्रिटिश पेट्रोलियम को अपने 21 तेल और गैस के कुएओं में 30 % की हिस्सेदारी बेचीं थी तब अरबो की इस डील पर सबने उंगली उठायी थी वरुण गांधी भी एक बार बोलकर चुप होगये. इसमें मजेदार बात ये थी की इन गैस फील्डो में रिलायंस ने महज 5.6 बिलियन डालर का निवेश किया और 7.2 बिलियन डालर में 30 प्रतिशत हिसा बेच कर अपने रकम से ज्यादा निकाल लिया वो भी सिर्फ 30 % हिस्सा बेचकर और आगे भी ब्रिटिश पेट्रोलयूम ही उसकी उत्पादन क्षमताओं के लिए मदद करेगी. अब सब मदद ब्रिटिश पेट्रोलयूम करेगी तब रिलायंस क्या दलाली करेगी?? संसद में अपने मनमाफिक कानून बनेवायेगी, मंत्री तो खैर है ही उनकी पसंद का, वही भारत को निर्यात कर अच्छा मुनाफा कर रही ब्रिटिश पेट्रोलयूम भारत में निवेश में देरी करेगी क्यूंकि अगर घर में तेल मिलेगा तो उसके निर्यात बंद हो जायेंगे यानी जो सब्जी अपने खेत में उग सकती है वो विदेशो से आ रही है. एक बात और भारत में एनर्जी -उर्जा के क्षेत्र में गैस की हिसीदारी 10 प्रतिशत है जबकी विदेशो में उसकी औसत 24 प्रतिशत है कग बैसन से गई मिलता तो महंगे तेल की जगह सस्ते गैस पर काम करते अगर सस्ती गैस की बिजली सस्ती होगी तो महंगाई भी कम होगी इस लिए ऊर्जा क्षेत्र की इस लापरवाही/बेईमानी का इलाज होना चाहिए. हमारे यहाँ इलेक्शन चंदे पर साफ़ सुथरी निति नहीं पर अमरीका में है जहा ब्रिटिश पेट्रोलयूम सबसे बड़ा राजनैतिक चंदा देने वाला ग्रुप है सोचिये ये कई देशो में फ़ैली पेट्रोलियम कंपनिया कैसे संसदों में अपने लिए कानून बनवा लेती है और मीडिया में अपनी छवि. पत्रकारों को भी रिलायंस के आगे न झुकते हुए इसके कर्मो को उजागर करना ही होगा ?

Sunday, October 28, 2012

अर्ली वार्निंग सिस्टम



इसे यूपी वालो की भाषा में इसे पूर्व चेतावनी तंत्र कहते है फेसबुक तो अपने यहाँ भड़काऊ कंटेंट के लिए ऐसे लोग रखती है जहा पर भड़काऊ कंटेंट हटा दिए जाते है केंद्र सरकार ने भी इन्टरनेट के विषय में ऐसी कमेटी बनाई है, मेरा ये सुझाव यूपी जैसे बड़े राज्य के लिए है की वे भी ऐसा ही निगरानी कक्ष बना ले. ये पूर्व चेतावनी तंत्र ना सिर्फ मेरठ में हुए फेसबुक को लेकर बवाल जैसी घटनाओं पर काबू रखेगा वरन सिटीजन जर्नलिस्ट की तरह काम करते हुए प्रदेश के विभिन्न कोनो में हालातो को  जांचने में राज्य की  मदद करेगा. फेसबुक पर मौजूद Anil Kumar Singh जी ने फैजाबाद की घटना पर लिखा था "आखिरकार फैजाबाद को साम्प्रदायिकता की आग में झोंकने की साजिश कामयाब हो ही गई .बाबरी मस्जिद की शहादत के समय भी फैजाबाद ने अपना संयम नहीं खोया था .............मस्जिद के ऊपर ही अपने मंजर मेंहदी भाई के अख़बार < अपनी ताक़त < का दफ्तर है .हम लोगो की बैठकी का अड्डा भी .उसे तोड़ डाला गया .किताबें फाड़ डाली गई .उनका कंप्यूटर प्रिटर तोड़ डाला गया .जम कर लूट हुई.तस्वीरें आज सुबह की हैं .आग अभी भी लगी हुई थी .देर -सबेर बुझा दी जाएगी .लेकिन लोगों के दिलों में सुलगते जख्मों को कब भरा जा सकेगा .इस आग को हम कैसे बुझाएंगे ?

उनकी लगाईं तस्वीर तो काफी कुछ बयान कर रही थी तब अगर सूबे के मुखिया इसे देख लेते तो आग इतनी ना बढ़ पाती, आज एक और उसी प्रकार का मुद्दा ग़ाज़ीपुर जिले के जिला पंचायत सदस्य Braj Bhushan Dubey ने उठायी  है तस्वीर लगाकर वे बता रहे है की गाँव में किसानी की समस्या क्या है . वे बता रहे है एशिया के सबसे बडे ग्राम गहमर, तहसील   ज़मानिया  में एक  पम्‍प कैनाल है जो गंगा नदी से निकलकर कई गांवों को पानी देती है। इस पम्‍प कैनाल से 4 और माइनर निकलते हैं। न मेन नहर में पानी आया और न माइनर्स में। आप देख सकते हैं कि नहर के अगल-बगल किसी खेत में पानी न जाने की वजह से किसानो ने या तो धान की रोपाई नहीं किया अथवा धान की फसल हुयी ही नहीं।वही वे बिहार की तस्वीर खींच दोनों में अंतर बता रहे है, वे लिखते है की  गहमर से मात्र दस कि0 मी0 की दूरी पर कर्मनाशा नदी के उस पार बक्‍सर जिले के चौसा में यह नहर है। आप देख सकते हैं कि बिहार की नहर कैसी है और किसान किस प्रकार नहर में पानी आने से अपनी फसल धान की काट कर अब दूसरी फसल के लिये खेत तैयार कर रहे हैं.

वे कहते है " विकास पुरूष ( सपा सरकार में कैबिनेट मंत्री ओम प्रकाश सिंह ) जब अपने क्षेत्र में पानी नहीं दिलवा सकते किसानो को तो ये पूरे प्रदेश में क्‍या करेंगे। मैने पूछा किसानो से कि आप लोग कुछ करते क्‍यों नहीं तो उनका जबाब था कि मंत्री फर्जी मुकदमा करवा देगा या अपने गुर्गों से मरवा देगा। क्‍या सत्‍यता है मैं नहीं जानता किन्‍तु किसानो की कायरता व मंत्री की निष्क्रियता पर तरस जरूर आता है"

कुछ इसी तरह का अलकन मेरे एक लेख में बिहार और यूपी की नहरों के विषय में हुआ है जहा कोसी में आयी बाढ़ के बाद बिहार ने काफी निवेश किया है वही यूपी में सिंचाई व् बाँध निर्माण  के नाम पर भ्रष्टाचार के अलावा कुछ नहीं हुआ है.

कामराज प्लान नहीं ये फेरबदल अधूरी चुनावी लीपा पोती है


जहाँ  डाल डाल पर नेता करते बसेरा वो यूपी बिहार है मेरा, आखिर कांग्रेस को समझ आ ही गया की यूपी बिहार किसी भी बबुआ के लिए रसगुल्ला नहीं की यूरोप में छुट्टियों के बाद आयेंगे और गुडुप कर खा जायेंगे. इन्ही सब बातों  को देखते हुए लगता है कांग्रेस ने इन प्रदेशो की  आस ही छोड़ दी है.  करीब 134 सीटो वाले इस भूभाग में महज पांच मंत्री है जबकि इसकी अपेक्षा 
 ममता से हिसाब बराबर करने के लिए तीन तीन मंत्री बंगाल से बनाये गए है. आगरा से लेकर नागपुर तक के मध्यभारत को भी  छोड़ दिया गया है, विन्ध्य से लेकर सतपुड़ा तक के आदिवासी  इलाके में कांग्रेस के पास कोई भी बड़ा आदिवासी नेता नहीं होना उस  समाज  की मुख्यधारा  में राजनितिक  रिक्तता को दिखाता है जिसे कई बार नक्सली भरते है, 
साथ ही केन्द्रीय मंत्री परिषद से दो आदिवासियों  के द्वारा त्यागपत्र  देने के बाद किसी आदिवासी को यहाँ से लाना ज्यादा  उचित होता. उड़ीसा,  मध्यप्रदेश में कांग्रेस पुनर्जीवित हो सकती है इसलिए राहुल ब्रिगेड की मीनाक्षी नटराजन से भी कम से कम कांतिलाल भूरिया जी जगह बाहरी जा सकती थी इस इलाके को भूलना  चुनावी चूक भी हो सकती है मेरे मत में रेल यही से किसी के पास जाना चाहिए था. 

आज के कैबिनेट फेरबदल में कांग्रेस को 2004 में सत्ता में वापिस लाने वाले आंध्र प्रदेश को 6 मंत्री पदों से नवाज़ा गया है पर दूसरे कांग्रेसी गढ़ महाराष्ट्र की और पिछले लोकसभा में अच्छी सीटें देने वाले यूपी की नज़रंदाजी समझ नहीं आयी, वैसे  कही इस नज़रंदाजी में दो प्रमुख सहयोगी एनसीपी व् समाजवादी का कोई हाथ तो नहीं याद कीजिये कैसे जब एक बार अमर सिंह नाराज हो गए थे कांग्रेस ने सत्यव्रत जी को प्रवक्ता पद से हटा दिया था. अन्य राज्यों में देखा जाए तो  दिनशा पटेल, मोदी के विकल्प बनेंगे ऐसा लगता नहीं, खिलाड़ी रानी नारा के द्वारा असम के मुसलमानों को फुसलाने का खेल है. जनार्दन द्विवेदी की जगह हिमाचल में चुनावी गणित को ठीक करने के लिए चंद्रेश और दिल्ली से दो दो केंद्रीय मंत्री समझ नहीं आते. इमानदार पर राजनीतिक रूप से असरहीन अजय माकन को खानदानी वफादारी का पुरूस्कार देना और पवन बंसल को रेल मंत्रालय देना कुछ जम नहीं रहा, पुरूस्कार भ्रष्टाचार का आरोप झेल रहे सलमान खुर्शीद व् रक्षा सौदों के दलाल के साथ रिश्तो का विवाद झेल रहे पल्लम राजू को भी मिला है. 

इस विस्तार में सबसे बड़े खतरे की घंटी मनीष तिवारी है जिन्हें सूचना प्रसारण मंत्री बनाया गया है, उनमे संजय गांधी काल के बंसीलाल वाली काबलियत दिखती है. राहुल ब्रिगेड की बात करें तो मानिक टैगोर जो की  वायको को हरा कर आये थे उनकी नज़रअंदाजी अखरी है. कुछ बड़े नामो के इस्तीफे के बाद लग रहा था की ये संगठन को पुनर्जीवित करने का कामराज प्लान है पर सरकार के मंत्रिपद चयन से तो ये सिर्फ अधूरी चुनावी लीपा पोती लग रही है . अब देखना है कांग्रेस संगठन में कौन क्या जिम्मेवारी संभालता है,वैसे कुल मिलाकर हम इससे कुछ अच्छा सोच रहे थे.

Friday, October 26, 2012

समाजवाद की बयार

चित्र: सोशलिस्ट पार्टी के फ्रांस्वा ओलांड के समर्थक पेरिस में वामपंथियों की पसंदीदा जगह प्लेस डी ला बास्तील पर जमा होकर जश्न मनाते हुए
चित्र: सोशलिस्ट पार्टी के फ्रांस्वा ओलांड के समर्थक पेरिस में वामपंथियों की पसंदीदा जगह प्लेस डी ला बास्तील पर जमा होकर जश्न मनाते हुए
"सन 2000 में प्रसिद्द लेखक व् विवाद फ्रांसिस फुकुयामा ने 'टाईम्स' पत्रिका में अपनी किताब डी एंड ऑफ़ हिस्टरी के सन्दर्भ में कहा था "अगर समाजवाद का मतलब राजनैतिक व् आर्थिक तंत्र में सरकारों द्वारा अर्थव्यस्था के एक बड़े हिस्से पर नियंत्रत व् उसके धन कापुनः वितरण करना है तब मेरे मतानुसार निकट भविष्य में इस समाजवाद का अगली पीढ़ी में उद्भव लघभग शुन्य है". ये वाक्य उनके ही नहीं बल्कि विश्व के लगभग सभी प्रमुख राजनैतिक चिंतको थे हो भी क्यों ना सोवियत विघटन व् जर्मनी के एकीकरण से उत्साहित ये लोग 2008 व् 2011 की आर्थिक मंदी का अंदाजा लागाने में चूक गए अब चुक गए है तब समाजवाद कहा चूकने वाला था.समाजवाद ने सबसे पहले स्पेन में 2004 के चुनावों में सफलता हासिल की उसके बाद ब्राज़ील के चुनावों में जीत हासिल की. 2009 की मंदी इन सबको लील गयी,क्या समाजवादी क्या पूंजीवादी सभी विचारधारा को ये बयार ले डूबी, पूंजीवाद की समर्थ अमरीकी जनता 40 % समाजवादी विचारधारा की समर्थक हो गयी ओबामा सोशिअल सिक्यूरिटी और समग्र स्वस्थ्य सेवा को राज्य से निवेश करने की बात पर राष्ट्रपति बन गए और सिद्धान्तिक तौर पर " ओक्युपाई वाल स्ट्रीट" मुहीम का समर्थन करते नज़र आये. जब समाजवाद की बात चलती है तब राष्ट्रवाद भी उतना ही हावी होता है क्यूंकि दोनों के जन्मने का कारण आर्थिक मंदी होती है सो बेल्जियम, स्पेन ने जहा राष्ट्रवाद की राह पकड़ी वही ब्राजील ने उग्र समाजवाद को नेतृत्व के रूप में चुना. कल के फ्रांस के चुनावों के नतीजे भी इसकी और ही इशारा करते है समाजवाद पैर पसार रहा है पर डर इस बात का है जब समाजवाद असफल होता है तब राष्ट्रवाद हावी होता है ,समाजवाद से राष्ट्रवाद का तो चोली दामन का साथ है.अगर भारत की कांग्रेस सरकार उत्तरप्रदेश समेत सब जगह हार रही है तो ये भी संकेत है उसके बढती महंगाई को रोक पाने की सरकारी विफलता का और इससे समाजवाद की हिंसक विचारधारा माओवाद व् राष्ट्रवाद के देश में फिर से सक्रिय होने के आसार है. ये खतरा महज भारत को नहीं वैश्विक है, यूरोप में मुस्सोलीनी व् हिटलर के राष्ट्रवाद से पहले समाजवादी ही राज करते थे , उनकी विफलता ने ही कट्टर व् उग्र राष्ट्रवाद को जन्म देकर वैश्विक अस्थिरता को जन्म दे दिया "

Thursday, October 25, 2012

ज़मीन का अधिग्रहण और इनसाइडर ट्रेडिंग

हैदराबाद के बड़े बिजिनेस स्कूल आई एस बी के संस्थापको में से एक रजत गुप्ता जो की मैकिन्सी जैसे बड़ी निवेशक कंपनी के निदेशक थे , साथ ही प्रोक्टर एंड गैम्बल व् गोल्डमन सैक के बोर्ड सदस्य थे जिन्हें माइक्रोसोफ्ट व् संयुक्त राष्ट्र के लिए उल्लेखनीय कामो के लिए सराहा जाता है , जो आई आई टी की डिग्री धारक है साथ ही हार्वर्ड के छात्र रहे है उन्हें दो वर्ष की जेल हो गयी, घटना अपने आप में बड़ी क्षोभनीय है. विश्व के सबसे मजबूत राष्ट्र , विश्व के सबसे खुले दिमाग के समाज अमरीका में सबसे ऊँचे स्थान पर जा पहुंचे गुप्ता का कसूर सिर्फ इतना था की उन्होंने बोर्ड सदस्य रहते एक तमिल मूल के निवेशक राजरत्नम को ये बता दिया था की गोल्डमन सैक 'फलानी कंपनी ' के शेयर खरीदने जा रही है जिस पर राजरत्नम ने तुरंत उस कंपनी के शेयर खरीद लिए. फिर जब गोल्डमन सैक ने वे शेयर खरीदने चाहे तो ऊँचे भाव पर राजरत्नम से खरीदे, जिससे कुल मिलाकर राजरत्नम को दस लाख डालर का फायदा हुआ.अब चूँकि ये फायदा अन्दुरुनी जानकारी को बाहर करने की वजह से हुआ था जो एक कंपनी से किया गया विश्वासघात है इसे क़ानून की नज़र में इन्साईडर ट्रेडिंग कहते है जिसके लिए सजा मिलती है, रजत गुप्ता को भी कल पचास लाख डालर हर्जाना व् 2 साल की सजा मिली है.

अब भारत चले आइये, यहाँ अभी हाल ही में सीमेंट कंपनियों पर ऐसे आरोप के तहत कुछ फाइन लगा था सज़ा किसी को नहीं हुई थी, क्यूंकि भारत के कोर्पोरेट भारत में खुदा सी हैसियत रखते है. राजनितिक क्षेत्र में भी ऐसी जानकारिया होती है जैसे जब बजट जब बनता है तब वित्त मंत्री बजट में जिन चीजों की कीमते बढ्ने या घटने वाली होती है वो संसद/विधानसभा में रखने से पहले किसी को नहीं बताते ताकि लोग जमाखोरी ना शुरू कर दे, ये भी एक प्रकार इन्साईडर जानकारी होती है.

जब किसी शहरी मास्टर प्लान में या किसी प्रोजेक्ट के लिए ज़मीन अधिग्रहण को मंजूरी मिलने की खबर किसी को पहले मिल जाए तो वो फटाफट उन जगहों की जमीन खरीद लेगा, और इनकी अनुमति देने की जानकारी नेताओ और सरकारी बाबुओ को होती है, ये दोनों अक्सर ऐसी जमीने खरीद भी लेते है अगर विश्वास नहीं होता तो बीकानेर में एक बड़े एहम राजनितिक हस्ती के रिश्तेदार के द्वारा ज़मीन की खरीद को देख लीजिये या फिर पुणे के इर्द गिर्द किसानो की ज़मीन की खरीद देख लीजिये जिसके लिए किसानो को गोली से भी पिछले साल भुना गया था. मेरे मत में ये सब 'इन्साईडर ट्रेडिंग' है जिसके जिम्मेवार नेता- बाबु का गठजोड़ है.

कल आर्थिक विशेषज्ञ व् पत्रकार   प्रोंजय राय ठाकुरता कह रहे थे की "सुब्बारामी रेड्डी के बीवी इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनी की डायरेक्टर है और सुब्बारामी जी संसद की कमेटी में है ये घर ही में कनफ्लिक्ट आफ इंटरेस्ट है", अब ऐसी जगहों में जानकारिया एक दुसरे से छुपती हो ऐसा तो होगा नहीं.

Sunday, October 21, 2012

सोयाबीन फसल की बर्बादी के हर्जाने में मिली जेल, सुनीलम हम आपके साथ है





खबरें बहुत सी है है पर आपकी खोज खबर लेने वाला शख्स ही जब मुश्किल में हो तब वो खबर सबसे एहम बन जाती है, ऐसा ही एक मामला  डॉ सुनीलम का है. तिजारती समाजवादी बड़े देखे सुने होंगे पर ज़मीनी मिलना एक दुस्वपन है. कल  मुलताई न्यायालय के न्यायाधीश एससी उपाध्याय ने मुलताई गोलीकांड में हत्या के दोषी पाए जाने पर पूर्व विधायक डॉ. सुनीलम सहित तीन लोगों को आजीवन कारावास एवं हत्या के प्रयास में सात-सात वर्ष के सश्रम कारावास की सजा सुनाई. मुलताई हत्याकांड पर अपने इस निर्णय पर पहुंची अदालत ने महज तीन मामलो में ही फैसला सुनाया है जबकि सरकारी तंत्र ने पूरे 66 मामले ठोंके थे.

इस फैसले के तुरंत बाद डॉ सुनीलम ने कहा "दिग्विजय सिंह ने मेरी हत्या के इरादे से ही 12 जनवरी 1998 को गोली चलवाई थी और मेरे खिलाफ 66 मुकदमे दर्ज कराने का मकसद सालों साल अदालत के चक्कर कटवाना तथा सजा दिलवाना ही था। आज मैं कह सकता हूं कि वे तात्कालिक तौर पर ही सही अपना षड्यंत्र पूरा करने में सफल हुए हैं"

मामला दिग्विजय सिंह की सरकार के समय का है जब सन 1997 में ओले पड़ने से सोयाबीन की फसल ख़राब होने की वजह से किसान दुखी थे, कम उपजाऊ और एक फसल वाली मध्य प्रदेश   की पठारी भूमि में अगर साल में एकमात्र होने वाली फसल खराब हो जाए  हो जाए तो साल भर किसान क्या कर सकता है तिस पर सत्ता में भी कोई सुनवाई नहीं हो तो किसान के पास आत्महत्या या हथियार के अलावा कोई रास्ता नहीं बचता, खैर उस समय सुनीलम आगे आये और मुआवजे की मांग को लेकर किसान  आन्दोलन को नेतृत्व दिया. डॉ सुनीलम राजनीति में आये   हुए उन चंद सफल 'दिस्टिंगग्युईशड' लोगो में से है जो जन आन्दोलन का नेतृत्व करते है इस लिए दिल्ली में बैठे आका उनके निर्वाचित ना होने का,  दिस्टिंगग्युईशड या विशिष्ट होने का आरोप नहीं लगा सकते, पर कल के फैसले पर सब छुपी लगाए बैठे है माननीय न्यायालया के फैसले का सम्मान है पर जरा सोचिये एक आन्दोलन को जो जय जवान जय  किसान के लिए चलाया जाता  है उस पर 'राजा साहेब' की पुलिस फायरिंग कर 18 किसान शिकार  हो जाते है 150 घायल हो जाते है उसी आन्दोलन का नेतृत्व कर रहे मुलताई के पूर्व विधायक डॉ. सुनीलम, प्रहलाद अग्रवाल एवं  शेशराव भगत को धारा 302 के तहत आजीवन कारावास एवं पांच हजार रुपये का जुर्माना की सजा को पा जाते है. वैसे बहुत से कार्यकर्ता मानते है की सरकार ने इन सभी लोगो पर झूठे मुक़दमे लगाया है क्यूंकि अडानी समूह (फार्च्यून तेल वाले ) नाम का बिजनेस हॉउस इनके विरोध से परेशान था यानी बात फिर जल जमीन जंगल की लूट पर आ टिकी है जो लाइलाज नासूर बन चुका है


इत्तेफाक है या दुर्भाग्य की बाबरी आन्दोलन में हज़ारो लोगो को इकठ्ठा कर जमकर बलवा करने वाले बच  निकलते है कुछ तो इसी राज्य के मुख्यमंत्री भी बन जाते है, पर एक साधारण किसान  आन्दोलन पर करीब 70 किसान कानूनी शिकंजे में फंस जाते है .. अब मुआवाजे की कौन कहे घर का सामान-जमीन बेचकर ये लोग सरकारी केस लड़ेंगे. आप अब भी सोचते है की सब ठीक ठाक है .....

इससे पहले वे पत्र लिखकर शिवराज चौहान से भी ऐसे केसों में किसानो पर हो रहे जुल्म पर अपनी बात रख चुके है इसी कड़ी में उनका ये पत्र को देखा जा सकता है.


प्रिय भाई शिवराज सिंह चौहान जी,
नमस्कार
 आपको यह पत्र मुलताई किसान आंदोलन के संबंध में लिख रहा हूं। आप जानते ही है कि 12 जनवरी 1998 को पडय़ंत्रकपूर्वक दिग्विजयसिंह की कांग्रेस सरकारी द्वारा मेरी हत्या तथा मुलताई किसान आंदोलन को कुचलने के उद्ेश्य से पुलिस गोलीचालन कराया गया था । सरकार द्वारा 250 किसानों के खिलाफ 66 मुकदमें दर्ज किये गये थे जिसमें से 17 मुकदमें मुलताई न्यायालय में लंबित है। जिनमें 3 अतिरिक्त सत्र न्यायालय में अंतिम चरण में है। कृपया स्मरण करें कि मुलताई गोली चालन की तुलना भारतीय जनता पार्टी द्वारा जलियावालाबाग हत्याकांड से की गई थी तथा भा.जा.पासरकार का मुख्यमंत्री बनने के बाद सुश्री उभा भारती जी ने सभी प्रकरण वापस लेने की घोषणा सदन में की थी। सरकार की घोषणा के बाद अब तक 1 लाख से अधिक प्रकरण वापस लिये जा चुके है, तथा लोक अदालतो के माध्यम से लाखो प्रकरणों का निराकरण किया जा चुका है, लेकिन मुलताई किसान आंदोलन से जुडे 17 में से एक भी प्रकरण वापस नही लिया गया है। गत 14 वर्षो में अनेक बार पेशी चूक जाने के चलते सैकडों किसान कई बार गिरपतार किये जा चुके है तथा 20 किसानो की अब तक मौत भी हो चुकी है।

आपसे अनुरोध है कि किसानो पर लादे गये फर्जी मुकदमों को वापस लेने हेतु निर्देश जारी करे ताकि न्यायालय के समक्ष सी.आर.पी.सी. की धारा 21 के तहत् प्रकरण वापसी का आवेदन लगाया जा सके। आप यह भी जानते हैं कि किसान संघर्ष समिति द्वारा शहीद किसानों की स्मृति में मुलताई में शहीद किसान स्तंभ के निर्माण की मांग की जा रही है, मैंने विधायक निधि से 20 लाख रुपए की राशि भी आवंटित की थी, लेकिन सामान्य प्रशासन विभाग से नुमति नही मलने के कारण शहीद किसान स्तंभ का निर्माण नही किया जा सका। सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि भारतीय जनता पार्टी को नागपुर नाके पर कार्यालय नर्माण के लिये उर्दू स्कुल (आर.टीओ. बेरियर) की करोड़ों रुपए की भूमि आवंटित कर दी गई लेकिन 24 शहीद किसानों के लिये आपकी सरकार ने एक इंच भूमि भी आवंटित करना उचित नही समझा यही नही मुलताई बस स्टैण्ड पर जो स्तंभ कांग्रेस शासन काल में रातो रात बनाया गया था। उस भूमि को भी आज तक शहीद स्तंभ के नाम पर आवंटित नही किया गया है। किसान सघर्ष समिति की मांग थी की मुलताई तहसील को शहीद किसान स्मारक के तौर पर विकसित किया जाये, लेकिन आपकी सरकार ने शहीद किसानो की स्मृति में भी कोई कदम नही उठाया है। किसान सघर्ष समिति 12 जनवरी को शहीद किसान दिवस पर पूरे प्रदेश में मनाने की मांग करती रही है लेकिन इस मांग पर सरकार ने ध्यान नहीं दिया है। मुलताई पुलिस गोली चालन के बाद तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने तथा बाद में आपकी सरकार ने शहीद किसानों के परिवार के एक सदस्य को स्थाई शासकीय नौकरी देने की घोषणा की थी लेकिन इस घोषणा पर भी अमल नहीं किया गया, आपसे अनुरोध है कि सभी शहीद किसानो के परिवार के एक-एक सदस्य को स्थाई नौकरी उपलब्ध कराने का निर्देश जारी करें।

भारतीय जनता पार्टी ने मुलताई में पुलिस गोली चालन के बाद एसपी-कलेक्टर पर हत्या के मुकदमें दर्ज करने की मांग की थी, लेकिन भा.जा.पा. की सरकार बनने के बाद एसपी कलेक्टर पर मुकदमा दर्ज करने की बजाय उन्हें पदोन्नति दी गई है। जबकि आप भलि भॉंति जानते है कि देश में अनेक गोली चालनो के बाद संबंधित अधिकारियो पर हत्या के मामले दर्ज किये गये है। आपसे अनुरोध है कि गोली चालन करने एवं करवाने वाले अधिकारियो पर मुकदमा दर्ज करवाने का निर्देश जारी करें ।
मुलताई किसान आंदोलन मुआवजे के सवाल को लेकर हुआ था। जिसमें फसल बीमा भी अहम मुद्दा था, भा.जा.पा. अपने घोषणा पत्रो में तथा भा.जा.पा. नेता अपने भाषणों में बराबर किसानों को दोनो मुद्दो को लेकर आश्वासन देते रहे हैं लेकिन अब तक कोई ठोस कार्यवाही सरकार द्वारा नही की गई है। मुलताई के किसानो द्वारा फसल बीमा की प्रिमियम राशि लगातार जमा कराई जाती रही है लेकिन फसल नष्ट होने के बावजूद उन्हे कम से कम दुगना मुआवजा तथा नियमानुसार फसल बीमा की मुआवजा राशि नही दी गई है। आपसे अनुरोध है कि इस संबंध में भी आप संबंधित अधिकारियों को आवश्यक निर्देश जारी करने का कष्ट करे ं  उक्त मुद्दो को लेकर किसान सघर्ष समिति का प्रतिनिधि मंडल आपसे अविलंब मुलाकात करना चाहता है आपसे अनुरोध है कि 12 जनवरी 2012 के पहले प्रतिनिधि मंडल को मुलाकात का समय दें ।

भवदीय
(डॉं. सुनीलम)पूर्व विधायक, संथापकअध्यक्ष, किसान संघर्प समिति

डॉ सुनीलम ने इन सब बातो के मद्देनज़र ही कल कहा "सरकार बदलने से किसानों के प्रति सरकार का दृष्टिकोण नहीं बदलता".