ब्लाग्मंत्र : जिस तरह आंसू के लिए मिर्च जरूरी नहीं, वैसे ही बुद्धिमता सिद्ध करने के लिए ज्यादा से ज्यादा कमेंट्स व् उच्च्श्रलंखता जरूरी नहीं

Sunday, October 28, 2012

कामराज प्लान नहीं ये फेरबदल अधूरी चुनावी लीपा पोती है


जहाँ  डाल डाल पर नेता करते बसेरा वो यूपी बिहार है मेरा, आखिर कांग्रेस को समझ आ ही गया की यूपी बिहार किसी भी बबुआ के लिए रसगुल्ला नहीं की यूरोप में छुट्टियों के बाद आयेंगे और गुडुप कर खा जायेंगे. इन्ही सब बातों  को देखते हुए लगता है कांग्रेस ने इन प्रदेशो की  आस ही छोड़ दी है.  करीब 134 सीटो वाले इस भूभाग में महज पांच मंत्री है जबकि इसकी अपेक्षा 
 ममता से हिसाब बराबर करने के लिए तीन तीन मंत्री बंगाल से बनाये गए है. आगरा से लेकर नागपुर तक के मध्यभारत को भी  छोड़ दिया गया है, विन्ध्य से लेकर सतपुड़ा तक के आदिवासी  इलाके में कांग्रेस के पास कोई भी बड़ा आदिवासी नेता नहीं होना उस  समाज  की मुख्यधारा  में राजनितिक  रिक्तता को दिखाता है जिसे कई बार नक्सली भरते है, 
साथ ही केन्द्रीय मंत्री परिषद से दो आदिवासियों  के द्वारा त्यागपत्र  देने के बाद किसी आदिवासी को यहाँ से लाना ज्यादा  उचित होता. उड़ीसा,  मध्यप्रदेश में कांग्रेस पुनर्जीवित हो सकती है इसलिए राहुल ब्रिगेड की मीनाक्षी नटराजन से भी कम से कम कांतिलाल भूरिया जी जगह बाहरी जा सकती थी इस इलाके को भूलना  चुनावी चूक भी हो सकती है मेरे मत में रेल यही से किसी के पास जाना चाहिए था. 

आज के कैबिनेट फेरबदल में कांग्रेस को 2004 में सत्ता में वापिस लाने वाले आंध्र प्रदेश को 6 मंत्री पदों से नवाज़ा गया है पर दूसरे कांग्रेसी गढ़ महाराष्ट्र की और पिछले लोकसभा में अच्छी सीटें देने वाले यूपी की नज़रंदाजी समझ नहीं आयी, वैसे  कही इस नज़रंदाजी में दो प्रमुख सहयोगी एनसीपी व् समाजवादी का कोई हाथ तो नहीं याद कीजिये कैसे जब एक बार अमर सिंह नाराज हो गए थे कांग्रेस ने सत्यव्रत जी को प्रवक्ता पद से हटा दिया था. अन्य राज्यों में देखा जाए तो  दिनशा पटेल, मोदी के विकल्प बनेंगे ऐसा लगता नहीं, खिलाड़ी रानी नारा के द्वारा असम के मुसलमानों को फुसलाने का खेल है. जनार्दन द्विवेदी की जगह हिमाचल में चुनावी गणित को ठीक करने के लिए चंद्रेश और दिल्ली से दो दो केंद्रीय मंत्री समझ नहीं आते. इमानदार पर राजनीतिक रूप से असरहीन अजय माकन को खानदानी वफादारी का पुरूस्कार देना और पवन बंसल को रेल मंत्रालय देना कुछ जम नहीं रहा, पुरूस्कार भ्रष्टाचार का आरोप झेल रहे सलमान खुर्शीद व् रक्षा सौदों के दलाल के साथ रिश्तो का विवाद झेल रहे पल्लम राजू को भी मिला है. 

इस विस्तार में सबसे बड़े खतरे की घंटी मनीष तिवारी है जिन्हें सूचना प्रसारण मंत्री बनाया गया है, उनमे संजय गांधी काल के बंसीलाल वाली काबलियत दिखती है. राहुल ब्रिगेड की बात करें तो मानिक टैगोर जो की  वायको को हरा कर आये थे उनकी नज़रअंदाजी अखरी है. कुछ बड़े नामो के इस्तीफे के बाद लग रहा था की ये संगठन को पुनर्जीवित करने का कामराज प्लान है पर सरकार के मंत्रिपद चयन से तो ये सिर्फ अधूरी चुनावी लीपा पोती लग रही है . अब देखना है कांग्रेस संगठन में कौन क्या जिम्मेवारी संभालता है,वैसे कुल मिलाकर हम इससे कुछ अच्छा सोच रहे थे.

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