ब्लाग्मंत्र : जिस तरह आंसू के लिए मिर्च जरूरी नहीं, वैसे ही बुद्धिमता सिद्ध करने के लिए ज्यादा से ज्यादा कमेंट्स व् उच्च्श्रलंखता जरूरी नहीं

Wednesday, September 21, 2011

भविष्य की इबारत लिखती तीन कहानियां

इस इबारत की पहली कहानी

धृतराष्ट्र के 'कृष्ण' घिर गए है, जनता पार्टी नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी ने आज 21 सितम्बर 2011 को सुप्रीम कोर्ट में एक पत्र दिखाया जो 25 मार्च, 2011 को प्रणब दा के वित्त मंत्रालय ने प्रधानमंत्री कार्यालय को लिखा था . उसमे लिखा था कि अगर पूर्व वित्तमंत्री चाहते तो, 2G स्पेक्ट्रम की 'पहले आओ, पहले पाओ' की जगह उचित कीमत पर नीलामी की जा सकती थी, यानि पत्र के जरिये प्रणब दा ने उस समय के वित्तमंत्री पी चिदंबरम के ऊपर सारी जिम्मेवारी डाल दी थी. प्रधानमंत्री कार्यालय से उदय गए इस पत्र से अब ये जानकारी सार्वजनिक हो गयी है तो सवाल खड़ें हुए है, अगर सवाल है तो स्वाभाविक रूप से मीडिया और देश में वे उठेंगे ही, फिर लाजमी है की बचने के लिए कुछ गिरफ्तारिया या इस्तीफे होंगे. कथा सार मनमोहन दौर अब गया समझिये , ऐसे में अगर जोड़ तोड़ कर कांग्रेस की सरकार बनती भी है तो उस सरकार का नेतृत्व राहुल न करना चाहें तब प्रणब , चिदंबरम और अंटोनी की प्रधानमंत्री पद के सबसे मजबूत दावेदार है फिलहाल इस रेस में अब प्रणब दा अपने इस पैंतरे से सबसे आगे हो गयें है.

इस हफ्ते एक बात और साबित हुई है की सीताराम केसरी दौर के बाद सोनिया नेतृत्व अपने सबसे कमजोर स्तिथि में पहुँच गया है जहा उनके मंत्रियो की अनबन सार्वजानिक हो गयी है. ऐसा नहीं की इनका अंदेशा जनता को पहले नहीं था अभी हाल फिलहाल में अन्ना आन्दोलन के दौरान पूर्व इन्कम टैक्स कमिश्नर विश्वबंधु गुप्ता के अनुमानों से भी यही लगा था, जब उन्होंने कहा था आज की राहुल गाँधी को चिदंबरम और सिब्बल ने अन्ना से बात करने से रोक लिया है और वे दोनों ही अन्ना पर कड़ें फैसले चाहते है ,शायद इसी बात की तरफ इशारा इसी हफ्ते किरण बेदी के एक ब्यान से भी होती है जब उन्होंने कहा था की राहुल ने हमें निराश किया था. अन्ना आन्दोलन के मुश्किल वक्त में कांग्रेस की तरफ इन दोनों से इतर नारायणसामी जी ने लोकपाल मुद्दे पर बागडोर संभाली थी, फिर जब संसद सत्र चालु हुआ तब कही जाकर चिदंबरम के उलट सोनिया ने प्रणब दा की अगुवाई में लोकसभा में अन्ना के प्रति नरम रुख अपनाने की राय को तरजीह दी. वैसे चिदंबरम प्रणब के इन पैंतरों से वाकिफ नहीं थे, ऐसा शायद ना हो और हो सकता है इसी पत्र की सुचना के बाद ही प्रणब के कांफ्रेंस हाल में मायक्रोफोन लगा, बगिंग हुई हो. उस वक़्त भी वित्त मंत्रालय का शक गृह मंत्रालय पर था मगर दबी छुपी जुबान में और दो मंत्रियो के टकराव के पहले संकेत मिले थे वो मामला तो रफा दफा हुआ पर स्वामी द्वारा इस प्रत्यक्ष प्रमाण के बाद तो इन सारे कयासों को विराम लगा दिया है के सब कुछ शांत है सरकार में.

इस इबारत की दुसरी कहानी

इस दूसरी कहानी के महानायक है श्री लाल कृष्ण आडवाणी जिनके लिए शायद नायक शब्द छोटा हो, क्योंकी अपने महत्वाकांक्षा के रथ पर कोई उनसा ही विरला इस उम्र में सवार हो सकता है. बचपन में एक कहानी पढ़ी थी की कैसे एक बादशाह जो की दक्षिण भारत विजय अभियान पर थे, ने गुप्तचरों से ये जानने के बाद की दुश्मन की सेना बड़ी विशाल है इस बात पर उन्होंने युद्ध किये बिना वापस लौटने का मन बनाया था. अपने विवेक को आगे करते हुए उन्होंने वापस जाने से पहले एक बार दुश्मन सेना को अपनी नज़र से आंकने का फैसला किया . वे दबे छुपे रूप में विरोधी कैम्प में गए, वहा रात के अँधेरे में उन्होंने देखा की दक्कन की सेना में अलग अलग चूल्हे जल रहे थे , उन्होने ये देख इस बात का अंदाजा लगाने में ज्यादा समय नहीं लिया की जाति बिरादरी में बँटी हुई ये सेना इकट्ठे होकर एक टीम की तरह से लड़ नहीं सकती और अगली सुबह उन्होंने वाकई वो युद्ध जीत लिया. फिल्म चक दे के कबीर खान की लडकियों अपनी हॉकी टीम को राज्य, भाषाई तौर पर बँटी पाती तो उस कमजोर आंकी जाने वाली टीम को कभी अंतर्राष्ट्रीय मुकाबला जीता नहीं सकती थी. एक दो बात जो फिल्मकार दिखाना भूल गए या विवादों के पचड़ें में नहीं पड़ना चाहते थे, इसलिए शायद उसको नहीं दिखाया वो था जाति और मज़हब में टीम का बंटना. लगभग हर भारतीय टीम इन चार चीजों पर बंट-सिमट चुकी है , तब ऐसे में भारतीय राजनैतिक टीम किस प्रकार चीनी ड्रैगन का सामना कर सकेगी . ये चीनी ड्रैगन जो हमारे देश को पर्ल स्ट्रिंग यानी मोती की माला मे फाँस रहा है. इस चीनी माला, जिसके मोती है राष्ट्रपति प्रेमदास का संसदीय क्षेत्र व् बंदरगाह हम्बनटोटा (श्रीलंका ), बंदरगाह चिट्टागाँव (बंगलादेश), बन्दरगाह ग्वादर (बलोचिस्तान) , नौसैनिक अड्डे कोको द्वीप (ब्रह्मदेश) हैं भारतीय तेल, रसद व् अन्य नैविक सुविधाओं का गला कभी भी घोंट सकता हैं. ये चीनी ड्रैगन पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में मजदूरों की जगह सेना कर्मी भेज रहा है , तमांग लद्दाख में हमारी चौकियो व् बंकरों को उड़ा देता हैं, जिसके षड़यंत्र के ताज़ा संकेत हमारे सामरिक मित्र विएतनाम की संप्रभुता पर हो रहे हमलें और हमारी उर्जा के ताज़ातरीन स्त्रोत दक्षिण चीनी सागर में अंकुश लागने की धमकी हैं. साथ ही एक साल पहले जाहिर हुई चीनी थिंक टैंक की वो रिपोर्ट जिसमे चीन में बढ़ती हुई भारत के प्रती नफरत व् चीन के तेज़ी से बिगड्तें हुए आन्तरिक हालात उसकी व्यापार नीति , श्रम नीति और सामाजिक नीति में बढते हुए बोझ व् उसका बढ़ता क्षेत्रीय असंतोष , इन से ध्यान हटाने के लिए चीन की जल्द ही भारत से युद्ध हो सकने की भविष्यवाणी , भारत को तैयार रहने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण सन्देश है

अब ऐसी परिस्तिथी में जब दुश्मन ललकार रहा हो तब दूध- बादाम- च्यवनप्राश खाकर अपने शरीर को मजबूत बनाने की जगह क्या आडवाणीजी की ये रथ यात्रा देश के धार्मिक ताने बाने को कमजोर नहीं कर देगी. इन मुश्किल हालातों में ,नेहरु को पंचशील मात्र का जाप कर तन्द्रा में लीन होकर चीनी आहट को नकारने का आरोप लगाने वालो को मैं ये बता दूँ की ये कोई आमिर की फिल्म नहीं की जहा उन्हें अपना घर बचाने के लिए भारत को किसी सलीम की जरूरत नहीं.

इस इबारत की तीसरी कहानी

अब जब पहली कहानी का सार ये था की मनमोहन सिंह की इमानदारी को कॉमन वैल्थ का दाग लग चुका है और उनके अर्थशास्त्रीय ज्ञान पर महंगाई का काला बादल छा गया है और इन दोनों बातो से उनके उस दावे की जिसमे उन्होंने कहा था के 'मैं कमजोर प्रधान मंत्री नहीं' की हवा निकल गयी है. जनता जनार्दन दबे छिपे रूप से राजा, और चिदंबरम वाले २ जी घोटाले पर उनकी धीमीगति से आगे बढने पर और जानते बुझते वाले सहयोगी दलों के मंत्रियो के भ्रस्टाचार पर मौन धारण करने पर उनके धृतराष्ट्र होने बात करने लगी हो तब ऐसे में उनका तीसरी बार जीतकर आना संभव नहीं लग रहा है . विकिलीक्स पहलें ही इस सरकार और सोनिया के नेतृत्व को कमजोर बता चुके है, प्रणब- चिदम्बरम की टकराहट, जगन्मोहन जैसे राजनैतिक नौसीखिए की बगावत, गुरुदास कामत का मंत्रिपरिषद त्याग से यही ये सिद्ध भी हो रहा है बाकी की पोल अन्ना आन्दोलन खोल चुका है. सरकार की चंहु ओर फजीहत हो रही है, उसके बचाव में अक्सर खड़ें दिखाए देने वाले समर्थक क्षेत्रीय दल के प्रमुखों जैसे लालू, करूणानिधि और शरद का कद खुद कांग्रेस कम कर चुकी है और सरकार के प्रति उदासीन हो चुकें है. मौजूदा समय में जो युपीयें सरकार कभी विपक्ष के कमजोर होने पर फूली रहती थी , हताशा में है. ऐसे में तीसरी कहानी के दो सूत्रधार एंट्री लेतें है दोनों ही विपक्ष की तरफ से खाली पड़ें प्रधानमंत्री पद की वैकल्पिक लड़ाई में कूद चुकें है एक ने अभी अभी राजनैतिक यज्ञ संपन्न किया है और उन्होंने अपनी कड़क हिंदुत्व की छवि की आहुति इस यज्ञ में डाली है साथ ही अपनी विजय के अश्वमेध को भी दौडाने की भी घोषणा की है. वहीँ फर्स्ट मूवर के फायदे को खो चुका दूसरा सूत्रधार जो दूर बैठा पहले सूत्रधार का मखौल उड़ा रहा था, अपने प्रतिद्वंदी सूत्रधार के यज्ञ को मिले समर्थन से, कही किंग मेकर लोग दिग्भ्रमित न हो जायें तो उसने भी अपने अश्वमेघ की हुंकार भर दी है.

जी हां ये अश्वमेध बेतिया, बिहार से शुरू होगा अगले महीने और जिसके सूत्रधार है बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार जो पहले यज्ञ करने वाले सूत्रधार गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को पटखनी दे विपक्ष के जितने की स्तिथि में प्रधानमंत्री पद के दावेदार बन सकते है. प्रधान मंत्री पद का बन्दर बाँट नहीं हो सकता इस लिए दोनों अपनी अपनी मजबूती सिद्ध करने चल पडे है एक संघ के आशीर्वाद तले है तो दूसरा सेकुलरवाद से पोषित है. जंगल का नियम है एक को हटना होगा देखें संघ और सेकुलरवाद की इस अन्दुरुनी लड़ाई में विजय किसे मिलेगी

1 comment:

  1. सब पोलटिक्स है। इस हमाम में सभी नंगे है, बात चाहे प्रणवदा की ही
    हो, उन्हें देश का प्रधानमंत्री होना चाहिए था पर सोनीया ने उन्हें कबूल नहीं किया तो फिर क्यों आज बे खामोश रहते है?
    और आडवाणी जी को लेकर सवाल ढेर सारे है पर भाजपा को खड़ा किसाने किया?
    और हमारे अपने नीतीश बाबू- जब फेसबुक पर लिखने के जुर्म में इन्होने अधिकारी का सजा दे दी तब समझिए इनकी मानसिकता क्या है। एको अहम द्वितियो नास्ती।

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