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चित्र: सोशलिस्ट पार्टी के फ्रांस्वा ओलांड के समर्थक पेरिस में वामपंथियों की पसंदीदा जगह प्लेस डी ला बास्तील पर जमा होकर जश्न मनाते हुए
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"सन 2000 में प्रसिद्द लेखक व् विवाद फ्रांसिस फुकुयामा ने 'टाईम्स'
पत्रिका में अपनी किताब डी एंड ऑफ़ हिस्टरी के सन्दर्भ में कहा था "अगर
समाजवाद का मतलब राजनैतिक व् आर्थिक तंत्र में सरकारों द्वारा अर्थव्यस्था
के एक बड़े हिस्से पर नियंत्रत व् उसके धन कापुनः वितरण करना है तब मेरे
मतानुसार निकट भविष्य में इस समाजवाद का अगली पीढ़ी में उद्भव लघभग शुन्य
है". ये वाक्य उनके ही नहीं बल्कि विश्व के लगभग सभी प्रमुख राजनैतिक
चिंतको थे हो भी क्यों ना सोवियत विघटन व् जर्मनी के एकीकरण से उत्साहित ये
लोग 2008 व् 2011 की आर्थिक मंदी का अंदाजा लागाने में चूक गए अब चुक गए
है तब समाजवाद कहा चूकने वाला था.समाजवाद ने सबसे पहले स्पेन में 2004 के
चुनावों में सफलता हासिल की उसके बाद ब्राज़ील के चुनावों में जीत हासिल
की. 2009 की मंदी इन सबको लील गयी,क्या समाजवादी क्या पूंजीवादी सभी
विचारधारा को ये बयार ले डूबी, पूंजीवाद की समर्थ अमरीकी जनता 40 %
समाजवादी विचारधारा की समर्थक हो गयी ओबामा सोशिअल सिक्यूरिटी और समग्र
स्वस्थ्य सेवा को राज्य से निवेश करने की बात पर राष्ट्रपति बन गए और
सिद्धान्तिक तौर पर " ओक्युपाई वाल स्ट्रीट" मुहीम का समर्थन करते नज़र
आये. जब समाजवाद की बात चलती है तब राष्ट्रवाद भी उतना ही हावी होता है
क्यूंकि दोनों के जन्मने का कारण आर्थिक मंदी होती है सो बेल्जियम, स्पेन
ने जहा राष्ट्रवाद की राह पकड़ी वही ब्राजील ने उग्र समाजवाद को नेतृत्व के
रूप में चुना. कल के फ्रांस के चुनावों के नतीजे भी इसकी और ही इशारा करते
है समाजवाद पैर पसार रहा है पर डर इस बात का है जब समाजवाद असफल होता है
तब राष्ट्रवाद हावी होता है ,समाजवाद से राष्ट्रवाद का तो चोली दामन का साथ
है.अगर भारत की कांग्रेस सरकार उत्तरप्रदेश समेत सब जगह हार रही है तो ये
भी संकेत है उसके बढती महंगाई को रोक पाने की सरकारी विफलता का और इससे
समाजवाद की हिंसक विचारधारा माओवाद व् राष्ट्रवाद के देश में फिर से सक्रिय
होने के आसार है. ये खतरा महज भारत को नहीं वैश्विक है, यूरोप में
मुस्सोलीनी व् हिटलर के राष्ट्रवाद से पहले समाजवादी ही राज करते थे , उनकी
विफलता ने ही कट्टर व् उग्र राष्ट्रवाद को जन्म देकर वैश्विक अस्थिरता को
जन्म दे दिया "
आपका विश्लेषण काफी हद तक सही है,वर्तमान पूँजीवादी सरकार समाजवादी रास्ते के कांटे साफ कर रही है।पूँजीवादीओं ने जनता को गुमराह करने के लिये धर्म का झूठा आवरण ओढ़ कर, धर्मभीरू जनता को डरा कर अपनी सत्ता मज़बूत कर ली है और कर रहे है लेकिन असलियत लोगों को जल्दी समझ में आने लगेगी,इसका नुकसान तो जनता को उठाना ही होगा।
ReplyDeleteआपका विश्लेषण काफी हद तक सही है,वर्तमान पूँजीवादी सरकार समाजवादी रास्ते के कांटे साफ कर रही है।पूँजीवादीओं ने जनता को गुमराह करने के लिये धर्म का झूठा आवरण ओढ़ कर, धर्मभीरू जनता को डरा कर अपनी सत्ता मज़बूत कर ली है और कर रहे है लेकिन असलियत लोगों को जल्दी समझ में आने लगेगी,इसका नुकसान तो जनता को उठाना ही होगा।
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