ब्लाग्मंत्र : जिस तरह आंसू के लिए मिर्च जरूरी नहीं, वैसे ही बुद्धिमता सिद्ध करने के लिए ज्यादा से ज्यादा कमेंट्स व् उच्च्श्रलंखता जरूरी नहीं

Thursday, October 11, 2012

सिताबदियारा के संत तूने कर दिया कमाल




आज सम्पूर्ण क्रान्ति के नायक जयप्रकाश नारायण का जन्मदिवस है जेपी ने उस आन्दोलन में रामधारी सिंह दिनकर की पंक्तियां 'सिंहासन खाली करो कि जनता आती है..' से सत्ता प्रतिष्ठान के खिलाफ जन हुंकार को अभिव्यक्ति दी वो आजकल भी जंतर मन्त्र और रामलीला ग्राउंड में सुनायी दे जाती है. हाल ही में रामनाथ गोयनका के पुण्य तिथि थी, गोयनका जी उस पीढ़ी का नेतृत्व करते थे जो आज भारतीय टी वी व् प्रिंट पत्रकारिता के शिखर पर है, सो पीढी से आये सुझाव के चलते गोयनका जी को पढने लगी., हिंदी में अधिकतर जो मिला वो प्रभाष जी का लिखा था उनकी पुस्तक लुटियन के टीले का भूगोल को भी पढ़ा. उन्हें पढ़ते पढ़ते मै जेपी और इन्दिरा गाँधी' में पहुँची जहा उन्होंने इमरजेंसी के बाद चुनाव, व् उसकी हार के बाद जयप्रकाश नारायण और इंदिरा जी के बारे में लिखा है " कांग्रेस इंदिरा गाँधी के पल्लू में बंधी पार्टी हो गई और सर्वोच्च नेता के लिए पूरी और दयनीय वफादारी राजनीतिक व्यवहार की कसौटी बन गई . इंदिराजी में सत्ता के इस अद्भुत केन्द्रीकरण से जेपी चिंतित होने लगे
..........उत्तरप्रदेश और ओडिशा चुनाव के लिए चार करोड़ रुपये इकट्ठे किये गए इससे जेपी इतने चिंतित हुए कि इंदिरा जी से मिलने गए और कहा कांग्रेस अगर इतने पैसे इकट्ठे करेगी और एक एक चुनाव में लाखो रुपया खर्च किया जाएगा तो लोकतंत्र का मतलब क्या रह जाएगा. सिर्फ वो ही चुनाव लड़ सकेगा जिसके पास धनबल और बाहुबल होगा ........"( ये बात 1972 की है जो आज के वक़्त लिए कही गयी थी आज बिलकुल यही हो रहा है ).

जेपी की पत्नी प्रभावती व् इंदिरा जी की माता कमला नेहरु दोनों सखिया थी जिनके मृत्यु भी उसी दौरान हो गयी प्रभास जी कहते है की अगर प्रभावती जी ज़िंदा होती तो वे जेपी को कभी इंदिरा के खिलाफ आन्दोलन नहीं छेड़ने देती. शोकाकुल जेपी ने 1 वर्ष उससे उबरने में लिए फिर दिसंबर तिहत्तर में उन्होंने यूथ फार डेमोक्रेसी बनाई. अहमदाबाद की मेस में घटिया खाने से उपजे बवाल ने वहा युवाओं के नवनिर्माण आन्दोलन का रूप दे दिया जिसने तत्कालीन चिमन भाई पटेल की गुजरात सरकार की बखिया उधेड़ दी. जेपी तब वहाँ कहा था की " उन्हें क्षितिज पर सन 42 दिखाई दे रहा है". सनद रहे सन 42 में भारत छोड़ो आन्दोलन आया था उसकी तर्ज पर सत्ता छोड़ो का आन्दोलन की शुरुवात वही हो गयी थी. फिर मार्च में यही 1974 में यही आन्दोलन पटना की गलियों में नितीश,लालू आदि छात्र नेताओ ने किया फिर जून की एक शाम उन्होंने कहा "यह क्रान्ति है मित्रें! और सम्पूर्ण क्रान्ति है। विधान सभा का विघटन मात्र इसका उद्देश्य नहीं है। यह तो महज मील का पत्थर है। हमारी मंजिल तो बहुत दूर है और हमें अभी बहुत दूर तक जाना है।"

आज के दौर में गुजरे दौर का एक नेता अगर प्रासंगिक है तो जयप्रकाश नारायण पर आज मीडिया में राष्ट्रनायक पर अभिनायक भारी पड़े है. अमिताभ बच्चन आज जयप्रकाश नारायण पर भारी पड़े है , दोनों की ही आज जन्मतिथि है. बीबीसी पर एक प्रोग्राम आता है जिसमे वे कार की विवेचना करते है विवेचना दो लोग करते है खुल के बिना लाग लपेट कर मूल्यांकन होता है जनता भी शामिल होती है , हमारे यहाँ जब कार का मूल्यांकन होता है तो मूल्यांकन वालो को पंचसितारा में जिमाया जाता है ये नव पण्डे फिर बैठ के स्तुति गान करते है. चुनावों में साधारण उम्मीदवार की खबरें पेड न्यूज के आगे दम तोड़ देती है पर महंगी कारो की रंगीन तस्वीरे छपती है. मार्केट की यही तो ताक़त है जिसकी वजह से बिकने वाले अमिताभ हर जगह है, आम आदमी की शक्ती के प्रतीक जयप्रकाश कही नहीं.

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