ब्लाग्मंत्र : जिस तरह आंसू के लिए मिर्च जरूरी नहीं, वैसे ही बुद्धिमता सिद्ध करने के लिए ज्यादा से ज्यादा कमेंट्स व् उच्च्श्रलंखता जरूरी नहीं

Thursday, October 11, 2012

दिल्ली इस नॉट फिट फॉर वॉकिंग


लुटियन की दिल्ली तो अब बस ख़ास लोगो के लिए ही है असल दिल्ली अब लुटियन की रचना के बाहर है. खैर हाल तो लुटियन की दिल्ली का भी कुछ ठीक नहीं, हम छोटे थे तब बोट क्लब का पानी साफ़ होता था, जमुना इतनी मैली ना थी, फिर वो वक्त आया जब घोषणा हुई की दिल्ली में आने के बाद जमुना का पानी "नॉट फिट फॉर ड्रिंकिंग' हो गया है . छुटपन में रिक्शा ट्रॉली से धीरे धीरे स्कूल पहुँचते थे शाय
द तब हम वैश्वीकरण की चपेट में नहीं आये थे सो सब कुछ जीवन की गति से चलता था, अब तो जेट स्पीड के बाद मैक ३ की स्पीड आ गयी है सो बच्चे छोटी छोटी वैनो में सरपट स्कूल पहुंचाए जाने लगे है . ये छोटी छोटी गाड़िया इतनी बढ़ गयी है की इसने सड़क के दोनों तरफ की जमीन को सुरसा की तरह लील लिया है. फूटपाथ तो पहले से ही मजबूत "गरीबो" के पास रहता है सो वहां भी पैदल चलने वालो के लिए जगह नहीं, ऊपर से यहाँ वहा से बेतरतीब निकलती बाइकें शॉक दे दे तो कोई असहज बात नहीं यानी कम मिलाकर दिल्ली की सड़के " नॉट फिट फॉर वॉकिंग". देवदास की भाषा में ......."एक वो भी दिन आएगा जब लोग कहेंगे दिल्ली इस नॉट फिट फॉर लिविंग".

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