ब्लाग्मंत्र : जिस तरह आंसू के लिए मिर्च जरूरी नहीं, वैसे ही बुद्धिमता सिद्ध करने के लिए ज्यादा से ज्यादा कमेंट्स व् उच्च्श्रलंखता जरूरी नहीं

Monday, October 8, 2012

ना खाता हूँ ना खाने देता हूँ

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पाकिस्तान की जेलो से भारतीय मछुआरों को छुडवाने के लिये अपील करने वाले गुजरात सरकार के मंत्री पुरुषोत्तम सोलंकी इस बार खुद के लिए ये अपील चुनावों में करते नज़र आयेंगे. कैसे ??
गुजरात में च चुनाव आने वाले है इसी सिलसिले में गुजरात में हो रही तैयारियों के खुद को तैयार कर रही हूँ, अभी कांग्रेस के चेहरे अर्जुन मोधवाडिया का ब्लॉग पढ़ रही थी. वहा से अभी मकान देने की कलाबाजी अब गायब है,नए मुद्दे आ गए है . अब लगता है भाजपा के सुशासन व् विकास में सेंध लगाने का प्रयास हो रहा है अब ऐन चुनाव के वक़्त उनके हाथ एक फुलझड़ी लगी है जो चुनावों में बम की तरह गूंजेगी. माजरा क्या है ये भी जान लीजिये : ये मामला भी प्राकृतिक संपदा के दोहन के नियमो में बदलाव से जनित भ्रष्टाचार से जुड़ा है. साल 2008 में इशाक मराडिया नाम के मछली के ठेकेदार ने गुजरात हाईकोर्ट में याचिका दायर कर आरोप लगाया कि राज्य के मत्स्य राज्य मंत्री पुरुषोत्तम सोलंकी ने राज्य के कई तालाबों और बांधों में मछली मारने के ठेके बिना सही प्रक्रिया का पालन किए अपने पसंदीदा लोगों को दे दिए है, जिसकी वजह से राज्य सरकार को 400 करोड़ रुपए का चूना लगा.
इस मसले पर मार्च 2012 में अदालत ने मंत्री के खिलाफ भ्रष्टाचार संबंधी कानून के तहत कार्रवाई की अनुमति देने का हुक्म दिया था, मामला मंत्री का था तो राज्यपाल से अनुमति लेनी थी जिसका फैलसा राज्य मंत्रिमंडल करती है. “खातो नथी ने खावा देतो नथी अर्थात ना खाता हूँ ना खाने देता हूँ ” का दावा करने वाली मोदी सरकार की राज्य मंत्रिमंडल ने 27 जून को सोलंकी के खिलाफ केस ना करने का फैसला किया, राज्यपाल डॉ कमला बेनीवाल जी ने राज्य मंत्रिमंडल के फैसले को पलटते हुए आधिकारिक तथ्यों के आधार पर किस करने की अनुमति दे दी . राज्य सरकार ने सुप्रीम कौर्ट के निर्णय को अपने बचाव में रखा तो आवेदक ठेकेदार इशाक ने मोदी सरकार की नींदा हराम करने वाले मुकुल सिन्हा की मदद से मंत्रिमंडल के फैसले को अदालत की अवमानना करार का पक्ष रखा. बात विधायिका और न्यापालिका में टकराव की देख कोर्ट ने आवेदक के अवमानना वाली बात को ख़ारिज करते हुए अदालत ने कहा की राज्य मंत्रिमंडल के फैसले के इतर भी राज्यपाल फैसला कर सकते है साथ ही मंत्रीजी की भी बचाव वाली याचिका खारिज कर दी है. अब केस चलना तय है.
चुनाव व् केस में क्या सम्बन्ध हो सकता है हज़ारो केस चल रहे है तो ये बात जान लीजिये की उत्तर प्रदेश में भी बाबूलाल कुशवाहा पर कुछ कुछ इसी प्रकार के इल्जाम नदियों से रेत खनन के लगे थे जो इसी साल हुए यूपी चुनावों में खूब उछाला गया था. सोलंकी मछुआरो के कोली समाज से आते है और ज्यादातर तालाब के कॉन्ट्रेक्टर मुस्लिम बिरादरी से अब कॉन्ट्रेक्टर कैसे फायदा देते है इस पर महाराष्ट्र में हंगामा हो ही रहा है . चूँकि मंत्रीजी ने स्वयं की बिरादरी और स्वयं के ठेकेदारों को लाभान्वित कर एक समुदाय विशेष के ठेकेदारों से पंगा कर लिया तो साम्प्रदायिकता को पोषित व् विरोध करने वाले दोनों हे लोगो के लिए चुनावी हथियार है.
बात इतने से नहीं ख़त्म होती सोलंकी मतस्यपालन मंत्रालय में छोटे मंत्री है जो सिर्फ ठेकेदारों की संस्तुति कर सकते है अंतिम फैसला तो कैबिनेट मंत्री को ही लेना होता है. ठीक वैसे ही जैसे कोयला मंत्री जायसवाल सिर्फ किसी की संस्तुति करते है पर कोयला का वंटन केंद्र सरकार ही करती है . अब तालाबो में मछली पकड़ने के आवंटन अंतिम फैसला तो कैबिनेट मंत्री दिलीप संघानी ने ही किया है जो खुद पिछड़ी लेवा पाटिल बिरादरी से आतें है यानी एक तीर से दो दो मंत्री साफ़ …

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