ब्लाग्मंत्र : जिस तरह आंसू के लिए मिर्च जरूरी नहीं, वैसे ही बुद्धिमता सिद्ध करने के लिए ज्यादा से ज्यादा कमेंट्स व् उच्च्श्रलंखता जरूरी नहीं

Monday, October 8, 2012

मैं अंग्रेजी हूँ, एक आम भाषा हूँ..



मैक्लायड की अनैतिक संतान से लेकर सूचना क्रान्ति की पटरानी तक सब रूप में अपने को देखा है,समाजवादी अरुचि से मंदिर बनवा कर मेरे पूजन तक सब झेला है .

विदेश से आई हूँ पर आपने समृद्ध नहीं किया क्या मुझे ?

सरकार की भाषा हूँ तो क्या इसलिए अभिजात्य हूँ ?

सवा सौ वर्षो से भारतवंशियो की सेवा कर रही अंग्रेजी के ये प्रश्न आसान नहीं इन्ही प्रश्नों पर उग्रनाथ जी का तथ्यपरक उ

त्तर " मैं इस प्रश्न में उलझा हूँ | क्या भाषा भी अभिजात बनाने में सहायक होती है | अंग्रेजी की आलोचना तो यही कहकर की जाती है | अपनी देसी भाषा हिंदी या अन्य कोई भी , के सापेक्ष यदि अंग्रेजी का प्रभाव देखें , तब तो यही कहना पड़ेगा | लेकिन अनुभव तो कुछ और भी इशारे करते हैं | भोजपुरी , अवधी , सामान्य भाषा बोलकर भी ज़मींदार बड़े आराम से सामंत बना होता था और बराबर शोषण और अत्याचार करता था , भले उसे अंग्रेजी बिलकुल न आती हो , या न बोलता हो | भाषा का उसके जलवे से कोई सम्बन्ध नहीं होता था | वह गालियाँ अंग्रेजी में तो नहीं देता रहा होगा ?"

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