ब्लाग्मंत्र : जिस तरह आंसू के लिए मिर्च जरूरी नहीं, वैसे ही बुद्धिमता सिद्ध करने के लिए ज्यादा से ज्यादा कमेंट्स व् उच्च्श्रलंखता जरूरी नहीं

Monday, October 8, 2012

दीनदयाल उपाध्याय का एकात्म मानववाद

dd25 सितम्बर 1916 में जन्मे दीनदयाल उपाध्याय कुशल संगठक, सामाजिक चिन्तक और पत्रकार और राजनेता थे, जिनको उनके द्वारा दिये गये ‘एकात्म मानववाद’ के दर्शन के लिए स्मरण किया जाता है. श्यामाप्रसाद मुख़र्जी जी अगर प्रखर राष्ट्रवाद को जनसंघ में लाये तो उसी जनसंघ में 14 साल महामंत्री रहे दीनदयाल उपाध्याय एकात्म मानववाद के सिद्धांत को लाये, जनसंघ से भाजपा तक का सफ़र जब  रथ यात्रा से तय किया गया तो इन दो बिन्दुओ की विशेष भूमिका रही.

 चर्च व् धर्म  को राजनीति से दूर करने की जो कामयाबी  यूरोप ने पायी भारत उससे कभी आज़ाद नहीं हो पाया, अपने अध्ययन में   प्राचीन ग्रीक के विद्वान् अरस्तु व् इसाई मत संत थोमस के विचारों में सामानता खोजने वाले  ज्ञक्एस  मारिटेन ने  यूरोपीय सत्ता ‘स्टेट’  के इस सेकुलरवाद को अधूरा मानते हुए अपने कैथोलिक विचारों का समावेश राजनीति में एक अलग विचारधारा  के रूप में किया, हालांकि जिन धर्मं को राजनीती से जोड़ने वाली क्रिस्टियन डेमोक्रटिक पार्टियों ने उनके इस सिद्धांत को माना  वे यूरोपीय राजनीति में आंशिक रूप से ही सफल हो पायी. ये सिद्धांत था एकात्म मानववाद या Integral Humanism .

 
 दीन दयाल जी के समकालीन  रहे ज्ञक्एस  मारिटेन के  इस सिद्धांत ने दीनदयाल जी के एकात्म मानववाद पर कितना प्रभाव डाला ये इन संदर्भो के बाद जानना ज्यादा मुश्किल नहीं होगा. इस विचार की परम्पराओं को सहेजे हुए क्रिस्टियन डेमोक्रटिक पार्टियों व् भारत में जनसंघ व् भाजपा की विचार धारा में भी ज्यादा अंतर नहीं है  मसलन दोनों ही परम्परावादी , एंटी सेकुलरवादी (ख़ास कर धार्मिक मसलो पर ) व् एंटी कम्युनिस्ट रही है, दोनों ही वर्ग  संघर्ष के सिद्धांतो  सिद्ध्नातो ना मानकर उदारवादी अर्थतंत्र  की पक्षधर है अनीश्वरवादी सेकुलरवाद से ज्यादा अपने धार्मिक व् सामजिक संगठन में कर्तव्य को सुनिश्चित करना आदि आदि. वैसे दीनदयाल जी के एकात्म मानववाद में   इन्सान  की  शारीरिक, मानसिक और बौद्धिक विकास  को भारत की  ‘अनेकता में एकता’ की अवधारणा के  तहत बल देने की बात की गयी है. 

एक जगह अपनी डायरी में उन्होने इसी की आस्था को व्यक्त करने के लिए के  न्यूयार्क टाइम्स के कोलमनिस्ट के ‘हिन्दू भारत’ नाम का अपने लेखकीय में बार बार उद्धरण करने पर तत्कालीन अमरीका में भारत के राजदूत मोहमद  करीम चागला का उदाहरण दिया. सादगी पूर्ण जीवन जीने वाले, पत्रिका ‘राष्ट्र धर्म’ (मासिक),  पांचजन्य (साप्ताहिक) तथा ‘स्वदेश’ (दैनिक) की शुरुआत करने वाले व् ‘सम्राट चन्द्रगुप्त’, ‘जगद्गुरु शंकराचार्य’, ‘एकात्म मानववाद’, ‘राष्ट्र जीवन की दिशा’, ‘राष्ट्रीयता का पुण्य प्रवाह’, ‘राजनैतिक डायरी’ आदि पुस्तकें लिखने वाले दीनदयाल जी आज के रेड्डी बंधू मय भाजपा में महज तस्वीर से ज्यादा बड़ी विरासत है, जिसको सहेजने  का काम नयी पीढी पर है.

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