ब्लाग्मंत्र : जिस तरह आंसू के लिए मिर्च जरूरी नहीं, वैसे ही बुद्धिमता सिद्ध करने के लिए ज्यादा से ज्यादा कमेंट्स व् उच्च्श्रलंखता जरूरी नहीं

Monday, October 8, 2012

गुजरात गाथा



साल की शुरुवात यूपी चुनावों के साथ हुई थी तब भी ऐसी ही श्रंखला वाल पर डाली थी अब साल का अंत भी चुनावो के साथ हो रहा है. चुनावी बिगुल फूंक दिया गया है भाजपा शासित के दो राज्य हिमाचल और गुजरात में चुनाव है, सरगर्मिया शुरू है. दशहरा दिवाली के साथ ही चुनाव भी काफी गुंजायमान होंगे पटाखो की गूंज तो अभी से सुनायी भी देनी शुरू हो गयी है. परसों नमो का छोड़ा राकेट 10 जनपथ से यु टर
्न लेकर वापिस नमो के छज्जे में फटा तब फिर उसके बाद अपने आँगन में 10 जनपथ वालो का अनार जलाना तो बनता ही है.

मौत के सौदागर वाले व्यक्तिगत हमले से पिछली बार मिली किरकिरी से दूर रहने का नतीजा है की इस बार हमला मुद्दों पर हुआ है. बी के हरिप्रसाद ने पिछला चुनाव व्यक्तिवादी कर दिया था इस बार मोढवाडिया सरकारी कामकाज की बखिया उधेड़ रहे है. परसों के नमो ने व्यक्तिगत हमले कर चुनाव को उसी बात को दोहराना चाह रहे थे पर कांग्रेस इस बार सतर्क है, नमो को उनके अखाड़े में लड्ने की बजाये अपने मैदान में ललकारा गया है.

नमो इस बार ना सिर्फ गुजरात के लिए बल्कि दिल्ली की दावेदारी के लिए भी लड़ेंगे गुजरात है तो पूरे देश में मीडिया कवर करेगा, गुजरात का चुनाव यूपी चुनावों की तरह ही राष्ट्रव्यापक होगा , नमो ने भी गुजराती छोड़ राष्ट्रीय स्तर के लिए हिंदी में भाषण शुरू कर दिया है यानी चुनावी भाषण के जरिये पूरे देश से मुखातिब होंगे. जब वे ऐसा करेंगे तो कुछ उनके अपनी पार्टी के दिल्ली में बैठे साथीयों को उनके बढ़ते कद से चिंता हो जायेगी फिर अल्पसंख्यको के सारे हितैषी अपने अपने डमरू बजा तमाशा कर उनको और कवरेज देंगे.

अंत में कल दिबांग कह रहे थे की इस बार मोदी हिन्दू मुस्लिम का ध्रुवीकरण नहीं कर सकते क्यूंकि ये ध्रुवीकरण 2014 में उनको प्रधानमन्त्री पद की दौड़ में पीछे कर देगा .... सो कुल मिलाकर अगर कांग्रेस की रणनीति ज़मीनी मुद्दों पर हमले की रही तब नमो की मुश्किलें बढ़ी समझिये.

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