ब्लाग्मंत्र : जिस तरह आंसू के लिए मिर्च जरूरी नहीं, वैसे ही बुद्धिमता सिद्ध करने के लिए ज्यादा से ज्यादा कमेंट्स व् उच्च्श्रलंखता जरूरी नहीं

Monday, October 8, 2012

बहुजन क्रान्ति के प्रेणता : महात्मा गाँधी



नमक आन्दोलन सही मायनों में पहली बहुजन क्रान्ति है जब गाँधी जी कहते है 1 लाख ब्रिटिश 35 करोड़ भारतीयों को गुलाम नहीं बना सकते, अपना कानून नहीं थोप सकते. 'भारत का नमक भारत का है' कह कर अंग्रेज़ी साम्राज्य की नींव हिलाने वाले गाँधी जी ने भारत के बहुजन को उपनिवेशिक अल्पजन के कानून को अस्वीकार करने के लिए प्रेरित किया. बाद में सविनय अवज्ञा आन्दोलन भी उसी तर्ज पर चला जहा 'ब्रिटिश भारत' की उपनिवेशवाद से त्रस्त बहुसंख्यक जनता ने समर्थन किया.गांधीजी अहिंसावादी,समाजवादी, राष्ट्रवादी, ग्राम्यवादी, स्वावलंबनवादी तो शायद रहे ही होंगे उनके दर्शन से ऐसा दिखाई भी देता है, पर साम्यवादी थे की नहीं इस बात का पक्का सबूत नहीं है पर वे निश्चित रूप से आज की इस व्यवस्था से भी खुश नहीं होते.

आज गांधी जयंती है , सो बहुत सारे कार्यक्रम होंगे कुछ सरकारी कुछ सरकार की कृपा दृष्टी के लिए , बहुत सारे लोग तो शनिवार से ही छुट्टियां मनाने के लिए निकल गए है तो कुछ घर में ही राष्ट्रीय अवकाश मन रहे है .आभासी दुनिया भी प्रयोजन पड़ने पर सक्रीय हो पड़ता है इसलिए वह भी खूब दो अक्टूबरमय हो जायेगा बहुत सारी पोस्ट्स गढ़ी व् अपनी वाल पर जड़ी भी की जायेंगी, यानी कुल मिलाकर गांधीजी हमारे अंतःकरण पर छाए रहेंगे .







ये चित्र न्यूजीलैंड के मशहूर फोटोग्राफर ब्रायन ब्रेक ने सन 1961 में छपी इंडिया - बाई जोए डेविड ब्राउन एंड एडिटर्स इन लाइफ नाम की पुस्तक के कवर के लिए लिया था. ये चित्र भी यही बात कहना चाहता है की फूल माला ,अगरबत्ती लगा कर नेताओ रहनुमाओं को पूजने की अपेक्षा उनके आदर्शो को पूजना पड़ेगा, लगभग व्यंग्य करते हुए चित्र में लिखा गया है की" लोग हर बात में, गांधी जी को आड़ बना लेते है और अपने राजकर्मो में "ऐसा गांधी जी ने कहा था " जोड़ देते है. सरकार अपनी नीतियों के लिए विपक्ष अपने विरोध के लिए सब उसी काम को दिखावे की तरह कर रहे है."

अब जरा याद कीजिये की ये ना केवल नेता बल्कि हम खुद भी करते है, प्याज 20 रुपये किलो से 30 हो गया है रेल किराया नहीं बढाया क्यूंकि वोटर नाराज़ हो जाएगा पर रेल में माल ढुलाई का किराया बढ़ा दिया सो नाशिक से आने वाला प्याज दस रुपये महंगा हो गया इसी तरह से डीजल का रेट बढ़ा तो हिमाचल के सेब व् पहाडी आलू महंगे हो गए.1961 में जो बात तस्वीर में कही है वो आज भी दिखती है, चाहे वो संसद में उपद्रव हो या महारष्ट्र में सिंचाई राष्ट्रवादी और गांधीवादी दोनों ही मिलजुलकर लीकेज युक्त तंत्र की यथास्तिथिवाद बनाये हुए है. मन में रोष आता है फिर सोचते है छोड़ यार,सब चोर है, गांधीजी से सत्य के लिए जुझारूपन से अड़ने का बात को छोड़ पिकनिक मानना ज्यादा सुहाता है. निजी जीवन में रघुपति राघव, राजा राम,जितनी सैलरी, उससे आधा काम करने के बाद गांधी व् उनके दर्शन को पुराने जमाने की बात कहेंगे. गांधी जी को प्रासंगिक बनाने के लिए कोई नया तामझाम नहीं करना है, बस अपनी बात को रखना है, गांधीवाद कोई राजनीति नहीं है, समाज व्यवस्था नहीं ये तो बस वो जादुई मन्त्र है जिसने हमें संदेह की स्तिथि में या हमारे अहम् के हावी होने पर उबरने का सबसे आसान तरीका दिया है, ऐसे वक़्त में सबसे गरीब और सबसे कमजोर आदमी का चेहरा याद कर, अपने आप से किया सवाल की क्या मेरे इस कदम से उस आदमी को कोई फ़ायदा पहुंचेगा ही असल में गांधीवाद है

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